एक वक़्त था
जब मेरे जन्म पर
तुमने कहा था
कुल्क्छिनी
आते ही
भाई को खा गयी |
माँ तेरी ये बात
मेरे बाल मन
में घर कर गयी
मेरा बाल मन रहने लगा
अपराध बोध से ग्रस्त
पलने लगे कुछ विचार ,
क्या करूँ ऐसा ?
जिससे तेरे मन से
मिटा सकूँ मैं
वो विचार
कम कर सकूँ
तुम्हारे
मन के अवसाद को |
वक़्त गुजरते गए
ज़ख्म भी भरते गए
फिर आया
एक ऐसा वक़्त
जब तुमने ही कहा
बेटियां कहाँ पीछे हैं
बेटों से
वो तो दोनों कुलों का
मान बढाती हैं ।
माँ
शायद तुम्हें भी
अहसास हो गया
क़ि जन्म नहीं
कर्म भाग्य बनाता है
बेटों का भी,
और बेटियों का भी ।
" रजनी नैय्यर मल्होत्रा "
12 comments:
ek dan sahi bat!
sundar prastuti!
behtareen***
बेहतरीन प्रस्तुति ।
mera hardik aabhar aap sabhi ko .....
pyari see rachna.......
sukriya ............mukesh ji
रजनी जी आपको अबीर गुलाल के
साथ होली की ढेरों शुभकामनायें ।
हैप्पी होली
हफ़्तों तक खाते रहो, गुझिया ले ले स्वाद.
मगर कभी मत भूलना,नाम भक्त प्रहलाद.
होली की हार्दिक शुभकामनायें.
"इस होली में सदभावना के रंग मिला कर रंग देना हर गाल,
ना वैर रहे मन में किसी के,ना रहे मन को किसी से मलाल."
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
नेह और अपनेपन के
इंद्रधनुषी रंगों से सजी होली
उमंग और उल्लास का गुलाल
हमारे जीवनों मे उंडेल दे.
आप को सपरिवार होली की ढेरों शुभकामनाएं.
सादर
डोरोथी.
आपकी ये प्रस्तुति भ्रूण हत्या रोकने में भी मददगार साबित होगी.
आपकी पोस्ट ने दिल गहराई को छु लिया .........
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