लहरों की थपेड़ों को
साथ-साथ सहते हैं दोनों,
आमने सामने होकर भी
मिल नहीं पाते
क्या क़िस्मत पाई है
किनारों ने |
दर्द उठे जिगर में
भर जाती हैं दोनों
मगर फिर भी
मिल नहीं पाती
क्या क़िस्मत पाई है
निगाहों ने |
भरे हैं नभ में
असंख्य विस्तार से
नज़दीक हो कर भी
मिल नहीं पाते,
क्या क़िस्मत पाई है,
सितारों ने |
साथ-साथ सहते हैं दोनों,
आमने सामने होकर भी
मिल नहीं पाते
क्या क़िस्मत पाई है
किनारों ने |
दर्द उठे जिगर में
भर जाती हैं दोनों
मगर फिर भी
मिल नहीं पाती
क्या क़िस्मत पाई है
निगाहों ने |
भरे हैं नभ में
असंख्य विस्तार से
नज़दीक हो कर भी
मिल नहीं पाते,
क्या क़िस्मत पाई है,
सितारों ने |
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