कब तक हमें,
इंतजार के,
अग्न में,
जलाएंगे,
कब तक ,
मेरी बेबसी को ,
वो आजमाएंगे,
एक दिन तो,
आएगा ऐसा,
वो हमारी ,
चाहत का ,
लोहा ,
मान जायेंगे.
"रजनी"
बुधवार, दिसंबर 23, 2009
कब तक मेरी बेबसी को , वो आजमाएंगे,
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 23.12.09 4 comments
Labels: Poems
सदस्यता लें
संदेश (Atom)