जब ज़िंदगी मुख़्तसर है दुआएँ भी क्या करें
आधी मनाने में निकले आधी आज़माने में
*******************************
ओढ़ रखी हैं जो उदासियों ने चादर
मुस्कुराहटें कह रही फेंक दे उतार के
*******************************
फेंक कर सिक्के कभी दी गईं किसी मजबूर को
उसकी दुआएँ भी कभी लग जाती है इंसान को
**********************************
ऐसे रीझ पड़ी मुझपर अँधेरी बस्तियाँ
जैसे कोई जगमगाता सूरज मेरे पास हो
*********************************
ज़िंदगी तेरा हर फ़ैसला मंज़ूर है
बस वक़्त को मेरे हक़ में कर दे
******************************
बेबसी बेक़सी दर्द चैन ख़ुशी
ज़िंदगी बता क्या क्या तेरे नाम हैं
*******************************
प्रफुल्लित है सृष्टि सारी झूम रहे धरती अम्बर
बस रोक लग गयी भागते मानव की रफ़्तार को
*******************************
बढ़ जाता है सौन्दर्य सँवरने से
श्रृंगार हुस्न का मददगार है
"लारा"