जिस गीत पर झूमता था दिल ,
उस गीत का हर तार अधूरा लगता है,
बंध जाते थे नैन मेरे आईने से बरबस ,
तुम बिन ये रूप श्रृंगार अधूरा लगता है.
सजाते रहे ग्रीवा को असंख्य ज़ेवरात से
तेरे मोती के हार बिन,अलंकार अधूरा लगता है.
राहें सूनी ,पनघट सूना, सूना सारा संसार,
रूठे जबसे श्याम , राधा का प्यार अधूरा लगता है .
यादों से सराबोर मेरा ह्रदय चाक- चाक,
बस तेरी तस्वीर से लिपटी, घर- बार अधूरा लगता है.
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
उस गीत का हर तार अधूरा लगता है,
बंध जाते थे नैन मेरे आईने से बरबस ,
तुम बिन ये रूप श्रृंगार अधूरा लगता है.
सजाते रहे ग्रीवा को असंख्य ज़ेवरात से
तेरे मोती के हार बिन,अलंकार अधूरा लगता है.
राहें सूनी ,पनघट सूना, सूना सारा संसार,
रूठे जबसे श्याम , राधा का प्यार अधूरा लगता है .
यादों से सराबोर मेरा ह्रदय चाक- चाक,
बस तेरी तस्वीर से लिपटी, घर- बार अधूरा लगता है.
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
11 comments:
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
मानुष तो सदा-सदा से ही अधूरा है!
bahut hi sunder prastuti
वाह रजनी जी,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
mera hardik aabhar ........
dr. shashtri ji .....
roshi ji ........
vivek ji ......... is sneh ka aabhar aap sabhi ko
उत्तम भाव हैं,
सार्थक रचना के लिए आभार
अनुभव अपार है. भाषाई संकट भी नहीं.अभ्यास में जो कमियाँ हैं अवश्य ही सुधर जायेंगी.
खूब लिखें! खूब पढ़ें!
sunder prastuti
sukriya aap sabhi ko.........
bahut sundar rachnaa rajni ji
badhaayee
hardik aabhar virendra ji....
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