जीवन की सफर में लय से सुर को छूटते देखा है.
अक्सर लोगों को बन कर भी बिखरते देखा है,
एक छोटी सी भटकाव भी बदल देती है रास्ता.
मंजिल तक आकर कदम फिसलते देखा है.
शुक्रवार, अगस्त 20, 2010
मंजिल तक आकर कदम फिसलते देखा है
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 20.8.10 2 comments
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हर चाह सिसक कर तब आह बन जाती है
"बदलती है किस्मत जो रूख अपना,
हर चाह सिसक कर तब आह बन जाती है,
वफा करके भी जब बेगैरत ज़िन्दगी से ,
ज़फ़ा की सौगात मिल जाती है. "
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 20.8.10 0 comments
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रु-ये -ज़िन्दगी उतनी हँसीं नहीं
ek urdu shayri zindaki ke bare me
रु-ये -ज़िन्दगी उतनी हँसीं नहीं, मालूम तब होता है जब दर्स दे जाती है,
दौरे-अय्याम जब सरशारी-ये -मंजिल से पहले नामुरादी जबीं पे सिकन लाती हैं.
रु-ये -ज़िन्दगी --- ज़िन्दगी का चेहरा
दर्स -- सबक
दौरे-अय्याम --समय का फेर
सरशारी-ये -मंजिल -- मंजिल की पहुँच
नामुरादी ------ असफलता
जबीं पे -- माथे पे
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 20.8.10 2 comments
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