"पथरा सी गयी निगाहें,
दीदार को,
फुरकत से ,
अब तो ख्वाब बन ,
कर छा जाओ,
तेरी मंजिल कि ,
डगर रुक गयी है .
कि ढल रही है शाम ,
अब तो आ जाओ".
सोमवार, जुलाई 19, 2010
कि ढल रही है शाम , अब तो आ जाओ".
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 19.7.10 1 comments
Labels: Poems
सदस्यता लें
संदेश (Atom)