चलने की कर तू शुरू ,
मंजिल की तलाश में,
राह का क्या है ,
वो खुद ही बन जायेगा,
मानती हूँ,
ठोकर भी ,
आते हैं राह में,
तू बन जमीं ,
किसी के वास्ते ,
कोई तेरा,
आसमां बन जायेगा.
"रजनी "
बुधवार, मई 05, 2010
तू बन जमीं किसी के वास्ते
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 5.5.10 8 comments
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अब तो सर पर दूरी का ये तूफ़ान आ गया.
देखते ही उसे मेरे जिस्म में जान आ गया ,
मेरे मदावा -ए-दर्द -ए-दिल का सामान आ गया.
बाद -ए-सहर जैसी लगती थी जुदाई की बात
अब तो सर पर दूरी का ये तूफ़ान आ गया.
बहुत लिए उल्फ़त में इम्तिहान हम तेरे,
अब तो अपनी चाहत का इम्तिहान आ गया.
तन्हाई क्या होती है खबर नहीं थी दिल को,
ज़िन्दगी के इस मोड़ पर ,जैसे श्मशान आ गया.
सीने में जलन आँखों में अश्कों का सैलाब "रजनी"
जानेवाली थी जान , कि दिल का मेहमान आ गया.
"रजनी"
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 5.5.10 1 comments
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भर दो जाम से पैमाना मेरा
इतना तो पी लेने दो,
अब न जाने दो,
भर जाने दो,
ज़मीं पर उतर जाने दो,
इतना तो पी लेने दो,
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 5.5.10 10 comments
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मंगलवार, मई 04, 2010
रिश्ते बोलते हैं
रिश्ता एक ऐसी ईमारत है जो विश्वास की बुनियाद पर टिका है,कोई भी मंदिर या मस्जिद एक बार टूटकर दुबारा खड़ी की जा सकती है, पर रिश्ता की ईमारत विश्वास की नीव पर है इस विश्वास रूपी नीव के टूटने पर रिश्तों के महल पल में टूटकर बिखर जाते हैं, चूर हो जाते हैं,जीवन में हम अनेक रिश्तों से बंधें हैं,जिसमे कई रिश्तों को हम ता उम्र निभाने की सोंचते हैं बिना किसी कड़वाहट के,और उस रिश्ते को निभाने में कोई ऐसा मुकाम आ जाये जो रिश्ते को तार,तार कर रख दे तो जीवन का सफ़र बिल्कुल नीरस लगता है, टूट जाता है जीवन का सपना, हम जिस पर विश्वास कर अपने जीवन की डोर उसके हाथों में सौंप दें और विश्वास करनेवाला विश्वास तोड़ता नज़र आये, तो रिश्ते की कोई अहमियत नहीं रह जाती, अगर आप विश्वास करते हों तो विश्वास को सदा बनाये रखें, क्योंकि विश्वास की बुनियाद पर ही रिश्तों के महल टिके हैं.........जितना गहरा रिश्ता उतना ही गहरा विश्वास, और जब ये गहरे से विश्वास अचानक से टूटते हैं तो टुकड़े ही नहीं रिश्ते चूर हो जाते हैं, रिश्तों की गरिमा बनाये रखने के लिए अपने साथ जुड़े लोगों परहमें विश्वास बनाये रखना चाहिए और विश्वास को टूटने नहीं देना चाहिए........................................
रिश्ते
कांच के बने होते हैं रिश्ते ,
"रजनी"
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 4.5.10 15 comments
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रविवार, मई 02, 2010
मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा.
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 2.5.10 9 comments
मजदूर हूँ अपनी मजबूरी बोल रहा हूँ
आज दिल का दर्द घोल रहा हूँ,
मज़दूर हूँ अपनी मजबूरी बोल रहा हूँ |
ग़रीबी मेरा पीछा नहीं छोड़ती,
क़र्ज़ को कांधे पर लादे डोळ रहा हूँ |
पसीने से तर -ब -तर बीत रहा है दिन,
रात, पेट भरने को नमक- पानी घोल रहा हूँ |
बुनियाद रखता हूँ सपनों का हर बार,
टूटे सपनों के ज़ख्म तौल रहा हूँ |
मज़दूरी का बोनस बस सपना है,
सपनों से ही सारे अरमान मोल रहा हूँ|
आज दिल का दर्द घोल रहा हूँ
मज़दूर हूँ अपनी मजबूरी बोल रहा हूँ |
"रजनी"
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 2.5.10 8 comments
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शुक्रवार, अप्रैल 30, 2010
बंद आँखों में भी मेरा दीदार हो जायेगा.
चाहत की क़ीमत न लगा ये अनमोल है ,
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 30.4.10 16 comments
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बुधवार, अप्रैल 28, 2010
क्या खबर थी मुझको वो इतना दूर हो जायेगा.
सजदा किया जिस देवता की वो पत्थर हो जायेगा,
क्या खबर थी मुझको वो बेवफा हो जायेगा.
प्रेम का दरिया बनकर हम तो उफन पड़े ,
क्या खबर थी मुझको वो सागर हो जायेगा.
छू कर हीरा कर डाला इस बूत से जिस्म को,
क्या खबर थी मुझको वो ऐसे तन्हा कर जायेगा.
मेरे हर दर्द को पीनेवाला समझ अमृत हर घूंट को,
क्या खबर थी अश्कों का जहर वो तन्हा पी जायेगा.
रूठना तो इश्क की दुनिया का दस्तूर है,
क्या खबर थी मुझको वो इतना दूर हो जायेगा.
हर शय पर जिसने मुझको पाया इस गुलिस्तान में,
क्या खबर थी मुझको वो इतना मगरूर हो जायेगा,
सजदा किया जिस देवता की वो पत्थर हो जायेगा,
क्या खबर थी मुझको वो बेवफा हो जायेगा.
"रजनी"
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 28.4.10 13 comments
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मंगलवार, अप्रैल 06, 2010
और फूल मुरझा गए
कलियों के मन तब खुद पर इठलाते थे
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 6.4.10 19 comments
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बुधवार, मार्च 31, 2010
क्या करें अब शिकवा हम तुमसे ये जमाना,
क्यों उनकी गली में शोर होता है |
हर ज़िंदगी में रोज़ यही कहानी होती है
हर ज़माने में यही दौर होता है|
जो महफ़िल में बने फिरते हैं पारसा,
क्यों उनके दिल में अक्सर चोर होता है|
कुछ तो बैठे रह जाते हैं हाथें मलते अपने,
कुछ के सिक्कों के बल पर, जयनाद चहूँ ओर होता है|
क्या करें अब शिकवा हम तुमसे ऐ ज़माना,
कि मेरा हर सहारा क्यों कमज़ोर होता है |
गुज़रते हैं दहशत में जिनके ज़िन्दगी के हर पल,
उनकी नींद में भी भगदड़ का शोर होता है|
जो रखते हैं संभाल कर हर शिकन से खुद को,
क्यों उनके दिल में अक्सर चोर होता है |
"रजनी"
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 31.3.10 9 comments
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