गुरुवार, फ़रवरी 17, 2011

विवाह के बारहवे वर्षगांठ पर

विवाह के बारहवे वर्षगांठ पर राजेश को ..........


तुम्हारे साथ लिए,
सात फेरे,
व् सात वचन ,
के साथ
बारह वर्ष ,
गुजर गए.
पर ,
सारे वचनों के मोल,
मैंने ही निभाए ,
तुमने तो,
 जो वक़्त बीते,
उन्हें निभाया नहीं,
बस गुजारा है.
फिर भी ,
ये कामना है ,
अब आनेवाला हर पल,
हमारे विवाह के ,
सात फेरों व्
सात वचनों की तरह,
पूरी मजबूती से  ,
गठबंधन की तरह ,
बंध जाये.
एक दुसरे के प्रति,
प्रेम, विश्वास ,
समर्पण के साथ.
जिस अग्नि को ,
साक्षी मानकर ,
हमने जीवनसाथी,
बन आजीवन ,
साथ निभाने की ,
कसमे उठायी थीं.
ये गठबंधन ,
किसी भी हालात में,
ना टूटे.
ना ही ,
क्रोध की अग्नि में ,
भस्म हो.
ये शिकायत  नहीं तुमसे,
तुम तो सदा ही ,
निन्यानबे के चक्कर में ,
पड़े रहे,
शायद हमारा फेरा ही ,
निन्यानबे का पड़ा.
क्योंकि ,
उस दिन ,(१८ -२-१९९९)
अठारह फरवरी उन्नीस सौ निन्यानबे था .
चाहती हूँ ऐसे रहना,
तेरे साथ,
जैसे गुलाब में उसकी खुशबू.

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"

बुधवार, फ़रवरी 16, 2011

जिसके घर में , कदम पड़ते ही

उसके
घर में   क़दम  पड़ते ही
मेरा धर्म भ्रष्ट हो गया
ये कह कर
वो स्नान को चली गयी |
उसने छुआ जिस  वस्तु को
उसमे गंगाजल डाल
कई बार धोती रही |
अचानक एक दिन
समाचार मिला
तेरा बेटा गिर पड़ा है
सड़कों पर |
वो बदहवास भागी,
तेज़ धूप और गर्मी के मारे
वो बेहोश हो गया था ,
उसने आनन् फानन में
दिया अपने पल्लू से हवा ...
तभी किसी ने कहा
इसे पानी पिलाओ
और,
जिसके घर में
क़दम  पड़ते ही
धर्म भ्रष्ट हो रहा था
आज उसी की हाथों से
पानी पीकर
उसका बेटा
नया  जीवन  पा गया |

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"

शुक्रवार, फ़रवरी 11, 2011

१४ फरवरी वेलेंटाइंस डे’ प्रेम दिवस

युवा पीढ़ी  दौड़ रही प्रेम दिवस मनाने में,
पाश्चात्य के पीछे अपनी संस्कृति भुनाने में.

स्कूल कालेज बंद आज, पर भीड़ लगी उद्यानों में,
लगे क़तार  में खरीदारी  को फूलों के दुकानों में.

१४ फरवरी वेलेंटाइंस डे’ प्रेम दिवस,
 क्या कहें युवाओं, इसे सर दर्द या प्रेम रस.???

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "

सोमवार, जनवरी 31, 2011

ये आईना

एक पुरुष
एक स्त्री को
भददी- भददी
गालियाँ  दे रहा था
और  निरंतर
उस स्त्री की
पिटाई कर रहा था |
कुछ लोग,
जिनमें  स्त्रियों की
संख्या   ज़्यादा    
 थी
पास से देखते
आपस में कहते रहे,
ये पति- पत्नी का
मामला है
हमें इससे क्या ?
ये  कुछ भी करें !
सभी
ये कह वहां से
खिसक गए ।
कुछ दिनों बाद
पत्नी,
पति को
अपने हाथों से
खिला रही थी
अपने घर के
 प्रांगन में ।
तभी,पड़ी
उनदोनों  पर
एक
पड़ोसन की नज़र ,
ये देख आसपास
चर्चे फ़ैल गए
कितने बेशर्म  हैं
ये लोग ,
क्या पति- पत्नी को
ऐसे रहा जाता है ?
ये  आईना है
हमारे सभ्य
समाज का
जिसमें
हम रहते हैं ।



"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"




शुक्रवार, जनवरी 28, 2011

बेटी होना गुनाह है ?

बेटी माँ से :
बेटी होना गुनाह है ?
माँ ,
बस  तीन बातें याद रख .....
भगिनी ,
भोग,
भरण.
 तू इसी लिए
पैदा हुई है | 
 बेटी ने कहा
ये ठीक नहीं माँ
मुझे
ये बंधन  नहीं,
ख़ुद का
फैसला भी चाहिए,
जो मुझे
अपने रूप से जीने दे
माँ :
अच्छा होता
ये कुल कलंकिनी
पैदा ही ना लेती |
तू तो ,
नारी  जाति के ,
नाम पर
कलंक है
जो वर्षों से
चली आ रही
इस
मर्यादा को
तोड़ने पर
उतारू है |

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "

मंगलवार, जनवरी 25, 2011

(फिर भी कहती हूँ जननी हूँ)

बालिका दिवस पर एक अजन्मी लड़की की व्यथा  (फिर भी कहती हूँ जननी हूँ)

जन्म लेकर क्या करूँ मै,
तुम्हारे इस संसार में.
क्या दे सकोगे ?
मुझे ख़ुद सा जीने का अधिकार,
अन्यथा करते रहोगे,
तमाम उम्र  ,
हर रिश्तों में मेरा व्यापार.
 हर साँस बस ,
घुट कर ही जीना ज़िन्दगी ,
तो,
अच्छा है मुझे ,
जन्म से पहले ही मार दो.
आ जाऊं इस संसार में तो ,
मांगूगी अपना अधिकार.
जब भी अधिकार के लिए ,
आवाज़ मैंने उठाई,
जन्मदाता ने ,
एक ही बात दुहराई.
क्यों पढ़ाया चार अक्षर इसे,
रहती ये भी अनपढ़,
ना दिखाती ये आँखें,
ना रहते ऐसे तेवर.
चुप्पी और सहनशीलता ही,
ऐ  लड़की तेरे ज़ेवर .
क्या तेरी माँ,दादी ने कभी ,
ऊँची आवाज़ लगायी,
किया किसी ने विरोध कभी ,
मर्दों के फैसले पर.
फिर क्यों तू ?
फैला रही अपने कटे हुए पर.
जब भी अधिकार के लिए ,
आवाज़ मैंने उठाई,
विरोध किया जब भी ,
किसी अनर्गल बातों का,
तो झट कह दिया जन्मदाता ने,
बेटी न  पैदा लेती,
या  पैदा लेते ही मर जाती.
इसके ऐसे  कर्म से तो ,
कुल की मर्यादा ना जाती |
फिर भी कहती हूँ जननी हूँ,
जन्म देने का ही नहीं,
इच्छित सांसो से ,
जीने का है अधिकार मुझे |
दे पाओ ये अधिकार,
 तो लाना इस संसार में,
आ जाऊं संसार में तो,
 मांगूंगी अपना अधिकार.

" रजनी नैय्यर मल्होत्रा "

सोमवार, जनवरी 17, 2011

ख़ुशी हूँ मै.

चंचलता की मै मूरत हूँ,
लोग कहते हैं , मै खूबसूरत  हूँ.
बोलो कौन हूँ मै ?
ख़ुशी हूँ मै.

जिसके ज़िन्दगी में  ,
वो तो मालामाल है,
जिसके ज़िन्दगी से बाहर,
 वो तो कंगाल है.

हर कोई चाहता है,
मेरा  ज़िन्दगी में साथ.
तीखी जीवन में मैं मिठास हूँ,
सूखे अधरों की मै प्यास हूँ.
आसां नहीं,
हर ज़िन्दगी में मेरा आना,
क्योंकि,
ख़ुशी चीज़ ही है ,
मुश्किल से मिल पाना.

हर कोई जीवन में ,
मेरी तमन्ना रखता है,
भर जाये सागर  जीवन में,
ऐसी चाहत रखता है.
कोई तो मुझे पाकर,
सागर सा ज़िन्दगी जीता है,
जहाँ मै नही,
वो बूंद बूंद को रोता है,

मुझसे ही पूरी है ,
जीवन की कहानी,
बस जाऊं  मै जहाँ,
ना आये आँखों में ,
गम की पानी.

हर आँख की चाहत है ,
बस मेरे आंसू भरना.
चंचलता की मै मूरत हूँ,
लोग कहते हैं , मै खूबसूरत  हूँ.
बोलो कौन हूँ मै ?
ख़ुशी हूँ मै.

" रजनी नैय्यर मल्होत्रा "

गुरुवार, जनवरी 06, 2011

कदम कदम पर बेबसी का शिकार ज़िन्दगी है

कुछ शाजिसों से होती शर्मशार ज़िन्दगी है,
कदम कदम पर बेबसी का शिकार ज़िन्दगी  है.

साथ मिला कदम से कदम ,जिनके हम चलते रहे,
वो ही छूपा कर खंजर, हमें बन रहनुमा छलते रहे.

एक  चेहरे पर कितने ही  चेहरे बदले आज इन्सान ने,
हैवान है या आदमी  शक्ल आये ना पहचान में.

बने फिरते हैं योद्धा तो आयें सामने  मैदान में,
छूप कर वार करना आदत  कायर इन्सान में.

आज हम पर दागी हैं अंगुलियाँ , तो शेर ना बन जायेंगे,
खुद की ही निगाहों में गिर, वो शर्म से मर जायेंगे.

किस हद तक आज गिर रहा इस दौड़ में जमाना  है ,
सच्चाई दम तोड़ने लगी हर कोई झूठ का दीवाना है.

"   रजनी नैय्यर मल्होत्रा "

रविवार, दिसंबर 26, 2010

ख़्वाब सजते हैं पलकों पर , बिखर जाते हैं

ख़्वाब  सजते हैं   पलकों पर , बिखर जाते  हैं,
हम डूबकर पलभर ही ,  इनमे निखर जाते हैं.

कह नहीं पाते अधर किस बात से सकुचाते हैं,
बस देखकर उन्हें हम, मंद मंद मुस्काते    हैं.

क्यों रोकते हैं खुशियों को ,ये कैसे अहाते हैं,
न    हम   तोड़ पाते हैं , न वो  तोड़ पाते  हैं.

उन्मुक्त हो अरमान भी शिखर चढ़ जाते हैं,
 टूट न  जाएँ  हम   ये सोंच,  सिहर  जाते हैं.

ख़्वाब   सजते हैं पलकों पर  बिखर जाते  हैं,
हम डूबकर पलभर ही, इनमे निखर जाते हैं.

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "

मंगलवार, दिसंबर 14, 2010

रहकर जिगर में कर देते हैं चाक चाक

रहकर जिगर में कर देते हैं चाक चाक,
जिनपर जिगर ये निसार होता है.

वो छोड़ जाता है हर हाल में साथ,
जो सीरत से ही फरेबी फनकार होता है. 

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "