एक पुरुष
एक स्त्री को
भददी- भददी
गालियाँ दे रहा था
और निरंतर
उस स्त्री की
पिटाई कर रहा था |
कुछ लोग,
जिनमें स्त्रियों की
संख्या ज़्यादा
थी
पास से देखते
आपस में कहते रहे,
ये पति- पत्नी का
मामला है
हमें इससे क्या ?
ये कुछ भी करें !
सभी
ये कह वहां से
खिसक गए ।
कुछ दिनों बाद
पत्नी,
पति को
अपने हाथों से
खिला रही थी
अपने घर के
प्रांगन में ।
तभी,पड़ी
उनदोनों पर
एक
पड़ोसन की नज़र ,
ये देख आसपास
चर्चे फ़ैल गए
कितने बेशर्म हैं
ये लोग ,
क्या पति- पत्नी को
ऐसे रहा जाता है ?
ये आईना है
हमारे सभ्य
समाज का
जिसमें
हम रहते हैं ।
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
एक स्त्री को
भददी- भददी
गालियाँ दे रहा था
और निरंतर
उस स्त्री की
पिटाई कर रहा था |
कुछ लोग,
जिनमें स्त्रियों की
संख्या ज़्यादा
थी
पास से देखते
आपस में कहते रहे,
ये पति- पत्नी का
मामला है
हमें इससे क्या ?
ये कुछ भी करें !
सभी
ये कह वहां से
खिसक गए ।
कुछ दिनों बाद
पत्नी,
पति को
अपने हाथों से
खिला रही थी
अपने घर के
प्रांगन में ।
तभी,पड़ी
उनदोनों पर
एक
पड़ोसन की नज़र ,
ये देख आसपास
चर्चे फ़ैल गए
कितने बेशर्म हैं
ये लोग ,
क्या पति- पत्नी को
ऐसे रहा जाता है ?
ये आईना है
हमारे सभ्य
समाज का
जिसमें
हम रहते हैं ।
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
25 comments:
सही लिखा है आप ने|यह एक विचारणीय विषय है|
भावनात्मक अभिव्यक्ति.
यही मानसिकता है समाज की , जहाँ किसी के दुःख-सुख से सरोकार रखना चाहिए , वहाँ से खिसक लिए। और जब किसी का सुख देखा तो ईर्ष्या से ग्रस्त हो बदनामी करने में जुट गए।
bahut bahut aabhar aap sabhi ko ..............
divya ji bilkul sahi kaha aapne yahi mansikta hai jyadatar smaj me .......
I really enjoyed reading the posts on your blog.
SAHI MUDDA
UTHAYA AAP NE
यह भी एक सच्चाई है ........ बहुत ही विचारणीय प्रस्तुति.
तभी तो कवि प्रदीप ने लिखा था -
'दुनिया रंग रंगीली बाबा दुनिया रंग रंगीली'
...एक गधे और बाप बेटे की हिन्दी अंग्रेजी की कहानी भी हमारे सभ्य समाज के नकाब को खूब उघैड़ती है.. बहुत खूब..
यक़ीनन रजनी जी यह आइना हमारे तथाकथित सभ्य समाज का ही है...... बहुत अच्छी लगी आपकी रचना
aap sabhi ke snehasish ke liye aabhari hun.... sneh milta rahe ........
bahut sunder.
dil ki gehraiyo me uter gayi aapki ye rachna ...shukriya
कविताओं के माध्यम से आपने सच्चाई बयां कर दी। यही हमारे सभ्य समाज की हकीकत है। पति पत्नी के आपस के झगडे में कूदकर कोई भी बीच बचाव करने की कोशिश नहीं करता, सब यह कहकर किनारे हो लेते हैं कि यह उनका आपस का मामला है लेकिन जब वे अपने दाम्पत्य जीवन में मशगूल रहकर दुनिया की परवाह नहीं करते तो ऐसे ही लोग पीठ पीछे बातें करते हैं।
रजनी जी, अफसोस होता है कि ऐसे दोगले चरित्र वाले लोग बहुतायत में पाये जाते हैं।
aap sabhi ke sneh ke liye aabhari hun ........net ki kathhinai ki vajah se aane me deri hui ...
बहुत सुन्दर रजनी जी । आपका ब्लाग bolg world .com में जुङ गया है ।
कृपया देख लें । और उचित सलाह भी दें । bolg world .com तक जाने के
लिये सत्यकीखोज @ आत्मग्यान की ब्लाग लिस्ट पर जाँय । धन्यवाद ।
bahut dundar....rajaniji....
बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति.
ये दुनिया दो धारी तलवार है.
एक तरफ से कुंद, एक तरफ से धार है.
आप की कलम को सलाम.
सुन्दर भावों से परिपूर्ण रजनी जी बेहतरी अभिव्यक्ति है आप की शब्दों के माध्यम से...
कमाल की बात ...अच्छा दर्पण दिखाया ... समाज कि ऐसी क्षुद्र मानसिकता पर करारी चोट... वाह...
दिल की गहराईयों को छूने वाली एक खूबसूरत, संवेदनशील और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति. आभार.
आपको वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!
सादर,
डोरोथी.
aap sabhi ke sneh ke liye hardik aabhari hun.......... mere yaha net ki prob. kuchh dino se banhi hui hai jiske karan aap sabhi tak nahi pahuch payi khed hai .........fir se aabahr is sneh ke liye
रजनी जी,
दुनियाँ की सही तस्वीर आपने प्रस्तुत किया है !
लोग ऐसे ही हैं !
आदरणीय रजनी मल्होत्रा जी
मेरे ब्लॉग पर आकर एक सार्थक टिप्पणी के लिए आपका आभार ...आशा है आपका मार्गदर्शन यूँ ही मिलता रहेगा ...आपका आभार
bahut sunder
इस जानदार और शानदार प्रस्तुति हेतु आभार।
=====================
कृपया पर्यावरण संबंधी इन दोहों का रसास्वादन कीजिए।
==============================
गाँव-गाँव घर-घ्रर मिलें, दो ही प्रमुख हकीम।
आँगन मिस तुलसी मिलें, बाहर मिस्टर नीम॥
-------+------+---------+--------+--------+-----
शहरीपन ज्यों-ज्यों बढ़ा, हुआ वनों का अंत।
गमलों में बैठा मिला, सिकुड़ा हुआ बसंत॥
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
एक टिप्पणी भेजें