बुधवार, फ़रवरी 16, 2011

जिसके घर में , कदम पड़ते ही

उसके
घर में   क़दम  पड़ते ही
मेरा धर्म भ्रष्ट हो गया
ये कह कर
वो स्नान को चली गयी |
उसने छुआ जिस  वस्तु को
उसमे गंगाजल डाल
कई बार धोती रही |
अचानक एक दिन
समाचार मिला
तेरा बेटा गिर पड़ा है
सड़कों पर |
वो बदहवास भागी,
तेज़ धूप और गर्मी के मारे
वो बेहोश हो गया था ,
उसने आनन् फानन में
दिया अपने पल्लू से हवा ...
तभी किसी ने कहा
इसे पानी पिलाओ
और,
जिसके घर में
क़दम  पड़ते ही
धर्म भ्रष्ट हो रहा था
आज उसी की हाथों से
पानी पीकर
उसका बेटा
नया  जीवन  पा गया |

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"

21 comments:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

tab bhi kahan samajhta hai koi , andhvishwaason ki diwaren liye chalta hai

संजय भास्‍कर ने कहा…

वाह ! रजनी जी,
इस कविता का तो जवाब नहीं !
विचारों के इतनी गहन अनुभूतियों को सटीक शब्द देना सबके बस की बात नहीं है !
कविता के भाव बड़े ही प्रभाव पूर्ण ढंग से संप्रेषित हो रहे हैं !
आभार!

सदा ने कहा…

गहन भावों के साथ बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

itne gahre bhaw...gamgeen kar diya !
behtareen!

amrendra "amar" ने कहा…

rajni ji bahut sunder likha hai aapne . man ki baaton ko khunsurti se ukera hai kagaj per

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

aap sabhi ko mera hardik aabhar ...

rashmi didi.........

sanjay bhai ,....

sda ji .......

mukesh ji .......

amrendra ji...........

aap sabhi ke sneh yun hi pati rahun......

विशाल ने कहा…

बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति.
समाज के दोहरे मानदंडों पर सटीक प्रहार.
सलाम.

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति ने कहा…

बहुत सुन्दर .. गहन अनुभूति .. और बहुत छू देने वाली रचना ..आपकी यह सुन्दर रचना कल चर्चामंच में होगी.. ....
आप चर्चामंच में आ कर अपने विचारों से अनुग्रहित करें ... धन्यवाद
http://charchamanch.blogspot.com

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

समाज में मौजूद दोहरे मापदंडों पर सटीक प्रहार ...... संवेदनशील अभिव्यक्ति....

अजय कुमार ने कहा…

एक कहानी ,एक संदेश
अच्छी रचना ।

Roshi ने कहा…

bhav poorn abhivyakti

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

आप सभी को मेरा हार्दिक आभार आपसभी के स्नेह के लिए.....
आज मेरे विवाह की बारहवी वर्षगांठ है आप सभी के स्नेह और आशीर्वाद की आकांक्षी .........

Kunwar Kusumesh ने कहा…

हालात को चित्रित करती बहुत अच्छी कविता है.

Atul Shrivastava ने कहा…

मौजूदा दौर का सुंदर चित्रण।
हम बेकार में भेदभाव और छुआछूत‍ के चक्‍कर में पडकर व्‍यर्थ के भ्रम पाले रहते हैं लेकिन यह नहीं समझते कि इंसान तो आखिर इंसान है।
हमारी नजरों से तब परदा उठता है जब हम पर कोई आपत्ति आती है और हमें ऐसे ही लोगों का सहारा मिलता है जिन्‍हें हम हमेशा नजरअंदाज करते रहते हैं।
बेहतरीन प्रस्‍तुति। बधाई हो आपको।

Atul Shrivastava ने कहा…

आपको आपके विवाह की वर्षगांठ की बहुत बहुत शुभकामनाएं।

Sadhana Vaid ने कहा…

जाति प्रथा पर करारा प्रहार करती बहुत ही सार्थक एवं प्रेरणादायी रचना ! अति सुन्दर !

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

रजनीजी, बहुत संवेदनशील रचना हे ,ऐसे उदाहरनो के द्वारा ही परिवर्तन संभव होगा --धन्यवाद

Kailash Sharma ने कहा…

गहन और सार्थक भावों को बहुत प्रभावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया है..बहुत सुन्दर रचना

Khare A ने कहा…

bahut hi sundar rachna, ek samajik virodhabas ko ya andvishvash ko khatm karne ka sandesh deti hui

badhai

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

alul ji .......

dr. nutan ji .......

rosi ji .........

ajay ji .........

dr. monika ji .....

kushumesh ji ........

sadhna ji .....

darshan ji ........

kailash ji .....

khare ji .........

aap sabhi ko mera hardik aabhar .........sneh milta rahe

Satish Saxena ने कहा…

कुछ अलग सी रचना और भाव लगे ...अच्छा लगा ! शुभकामनायें आपको !