लटकती झुर्रियां
झूलते हाथ-पांव ,
ढूंढ रहे
मुक्ति का रास्ता |
भटक रहा सड़कों पर
बिता हुआ कल
सरहद बन गयी जबसे
घर की दीवारें ...
यादें नापती हैं, ज़मीं
कभी आकाश |
हथियार डाले उनका आज
बैठ गया है
वील चेयर पर ...
पुकार रहा
धराशायी सिपाही सा ,
बुजुर्गों का भविष्य !
जी रहा है कछुआ
छिपा कर ,
खोल के भीतर का रहस्य ...
जो बिलकुल सपाट है |
" रजनी मल्होत्रा नैय्यर "
झूलते हाथ-पांव ,
ढूंढ रहे
मुक्ति का रास्ता |
भटक रहा सड़कों पर
बिता हुआ कल
सरहद बन गयी जबसे
घर की दीवारें ...
यादें नापती हैं, ज़मीं
कभी आकाश |
हथियार डाले उनका आज
बैठ गया है
वील चेयर पर ...
पुकार रहा
धराशायी सिपाही सा ,
बुजुर्गों का भविष्य !
जी रहा है कछुआ
छिपा कर ,
खोल के भीतर का रहस्य ...
जो बिलकुल सपाट है |
" रजनी मल्होत्रा नैय्यर "
4 comments:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, संत वाणी - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
hardik aabhar aap dono ko ..
सुन्दर प्रस्तुति
सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
शुभकामनाएँ।
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