लटकती झुर्रियां
झूलते हाथ-पांव ,
ढूंढ रहे
मुक्ति का रास्ता |
भटक रहा सड़कों पर
बिता हुआ कल
सरहद बन गयी जबसे
घर की दीवारें ...
यादें नापती हैं, ज़मीं
कभी आकाश |
हथियार डाले उनका आज
बैठ गया है
वील चेयर पर ...
पुकार रहा
धराशायी सिपाही सा ,
बुजुर्गों का भविष्य !
जी रहा है कछुआ
छिपा कर ,
खोल के भीतर का रहस्य ...
जो बिलकुल सपाट है |
" रजनी मल्होत्रा नैय्यर "
झूलते हाथ-पांव ,
ढूंढ रहे
मुक्ति का रास्ता |
भटक रहा सड़कों पर
बिता हुआ कल
सरहद बन गयी जबसे
घर की दीवारें ...
यादें नापती हैं, ज़मीं
कभी आकाश |
हथियार डाले उनका आज
बैठ गया है
वील चेयर पर ...
पुकार रहा
धराशायी सिपाही सा ,
बुजुर्गों का भविष्य !
जी रहा है कछुआ
छिपा कर ,
खोल के भीतर का रहस्य ...
जो बिलकुल सपाट है |
" रजनी मल्होत्रा नैय्यर "
5 comments:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, संत वाणी - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (23-05-2015) को "एक चिराग मुहब्बत का" {चर्चा - 1984} पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
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hardik aabhar aap dono ko ..
सुन्दर प्रस्तुति
सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
शुभकामनाएँ।
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