सोमवार, मई 11, 2015

साज़ -ए दिल पर गीत मोहब्बत के गाते रहो



  बाद-ए-मुख़ालिफ़ में चिराग़ जलाते रहो
 दिल मिले या न मिले हाथ  मिलाते  रहो

  तिश्नगी बुझ जाएगी समंदर की' अगर
  बादलो  मुसलसल बूंद -बूंद बरसाते  रहो


   माना की एक  फ़ासला  है हमारे दरमियाँ
   इतना करम करो की तुम  याद आते रहो

  ग़फलत में  डूबी   हुई   है दुनिया सारी
 तन्हा   अपने हौसलों  से तुम जगाते   रहो

 नफ़रतों से भरी   इस जहाँ  में रजनी
साज़ -ए दिल पर गीत मोहब्बत के गाते रहो


2 comments:

Unknown ने कहा…

बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें. कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

shukriya Madan g..........