शुक्रवार, अक्टूबर 29, 2010

ज़िन्दगी के सफ़र के सिलसिले तय कर लेते हैं

"एक जन्म भी नहीं निभा पाते लोग वफादारी के साथ,
यूँ ही सात जन्मों के बंधन का सौदा कर लेते हैं.

राहें जुदा सही ,मंजिल साथ मिले ना मिले ,
ज़िन्दगी के सफ़र के सिलसिले तय कर लेते हैं ."

"रजनी मल्होत्रा नैय्यर "

सोमवार, अक्टूबर 25, 2010

मेहंदी ने तय कर दी, तेरे प्रीत का रंग कितना गहरा है

करवा चौथ  पर ................

" मेहंदी ने तय कर दी, तेरे प्रीत का रंग कितना गहरा है,
आज मेरी निगाहें बार बार, हथेली पर टिक जाती है. "

हो जाता है इस बात का यकीं देखकर ,
हर सुहागन क्यों मेहंदी के रंग पर इतराती हैं ??

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अमर सुहाग का मिले आभा ,मेरे चेहरे के नूर को,
कभी भी ना चाँद मेरा ,मेरे फलक से दूर हो.

एक दिन इंतजार होता है, करवा चौथ के चाँद का ,
पर मेरे चाँद का मुझे , हर दिन इंतज़ार रहता है".

"रजनी मल्होत्रा नैय्यर "

गुरुवार, अक्टूबर 21, 2010

क्या फर्क मुझमे और जमाने में

क्या फर्क मुझमे और जमाने में ,
मैंने भी ना छोड़ा कसर कोई,
अपने बदले रंग दिखाने में,
जिसने मुझे पार लगाया,
डुबो दिया उसे ही,पा कर किनारा ,
ख़ुद को भंवर से बचाने में".

"रजनी मल्होत्रा नैय्यर "

बुधवार, अक्टूबर 13, 2010

नहीं सीख पाया मन मेरा छलावा

"नहीं सीख पाया मन मेरा  छलावा,
जो लगाती मै भी मुखौटा ,
मुझ पर भी चढ़ जाते रंग जमाने के.

"रजनी मल्होत्रा नैय्यर"

गुरुवार, अक्टूबर 07, 2010

नवरात्री में नवदुर्गा से मन की कामना ये है ...

आपसभी को नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएं...........
नवरात्री में नवदुर्गा से मन की कामना ये है .........

नवरातों के नव दिनों में मांगूँ झोली पसार,
हर प्राणी में हो जाये माँ स्नेह का संचार.

फिर से हो रहा सत्य धराशायी,डोल रहा संसार,
अब  रूप बना ले फिर काली का दुष्टों को संहार.

ये विनती श्रद्धा से झोली पसार,
ये विनती श्रद्धा से झोली पसार.

छल और कपट भर गए मन में,झूठ बना व्यापार,
फिर से हो रहा सत्य धराशायी,डोल रहा संसार.

पुण्य जाने कहाँ खो गया,हुई  पाप की जय जयकार.
भर गया पाप का घट फिर से,बढ़ गया अत्याचार.

 फिर से हो रहा सत्य धराशायी,डोल रहा संसार,
अब  रूप बना ले फिर काली का दुष्टों को संहार.

नवरातों के नव दिनों में मांगूँ झोली पसार,
हर प्राणी में हो जाये माँ स्नेह का संचार.

"रजनी मल्होत्रा नैय्यर".

बुधवार, अक्टूबर 06, 2010

बुझने लगते हैं दीये हौसलों के, जब बुरे वक़्त की आंधी चलती है

बुझने  लगते  हैं दीये  हौसलों   के,
जब बुरे वक़्त की आंधी चलती है |

डगमगाते हैं हम राहों  में जीवन  के,
बुद्धि    नाकाम   हो   हाथ मलती  है |

जो   ना   हारें   नाकामी से  डर  के,
 तक़दीर सदा  संग उनके चलती है |

चीर   जाते हैं   जो  सीना  लहरों के,
उनसे  दुनिया  मिलने  में जलती  है |

क्यों  कमजोर  हों आगे   वक़्त   के,
ज़िन्दगी ऐसे ही करवटे  बदलती  है|

बुझने   लगते हैं   दीये   हौसलों   के,
जब   बुरे वक़्त की   आंधी चलती है|

"रजनी मल्होत्रा नैय्यर "

मंगलवार, अक्टूबर 05, 2010

जब , खुशियाँ आती है, तो सौ रंग चढ़ जाते हैं

बहुत ही उत्कंठित होकर
स्वागत किया था
मैंने |
दर्द के पहले क़दम  का
ख़ुशियों  के रूप में,
जब पहली दस्तक
दिया था उसने
तुम्हारे रूप में |
मेरे  जीवन में ,
प्रवेश हुआ
जब धीरे धीरे वो 
मेरे अंतर्मन में ,
अपना
आधिपत्य जमाने  लगा |
जब  यक़ीन  हो गया उसे
मेरे रग रग में वो
समा चुका है,
फिर धीरे से उसने
अपना रंग दिखा दिया
क्योंकि जब ,
खुशियाँ आती है
 सौ रंग चढ़ जाते हैं |
पर जाती है तो
दे जाती है ,बस
विरानियाँ ,बेचैनियाँ
और ,
जीवन भर के लिए
एक ख़ालीपन|
जिसके भराव के लिए
कुछ भी ,
पूरा नहीं मिलता | 

"रजनी मल्होत्रा नैय्यर "

जानते हैं हम तन्हा हो जायेंगे

हाथ रख कर वो दुखते  रगों में मेरी,
बातों के तीर जिगर में चुभा देते हैं,
जानते हैं हम तन्हा हो जायेंगे,
क्यों गिन कर रुखसती के दिन बता देते हैं.

"रजनी मल्होत्रा नैय्यर "

सोमवार, अक्टूबर 04, 2010

इन्सान की शक्ल में जहाँ हैवान बस जाते हैं

इन्सान की शक्ल में जहाँ हैवान बस जाते हैं,
वहां आसानी से जज्बों के मकान बह जाते हैं.

लाख छल से लोग अपनी बात में भारी हों,
एक दिन तो सच के आगे खामोश रह जाते हैं.

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा".

शुक्रवार, अक्टूबर 01, 2010

ये सोने की चिड़िया चहकेगी कैसे

ये     सोने    की    चिड़िया   चहकेगी    कैसे,
हर   डाल पर    शिकारियों    ने तीर   साधे हैं|

क्या    करेंगे  वो सन्तान का     कर्तव्य   पूरा,
जिन्होंने  माँ को आपस में बांटे आधे -आधे हैं |  

झेलती   ग़रीबी        और   लाचारी  के    मारे ,
आधी   जनता लोमड़ी, आधी   सीधे-   साधे हैं |

सफेदी   में   छूपे   हैं    नक़ाब      कालेपन   के,
हर      वादे   पर  चढ़े  एक   झूठे       वादे    हैं |

आज़ादी     की    सांसे    लग   रही  भारी इन्हें,
फिर    से    ज़ंजीरों     में जकड़ने   के   इरादे  हैं | 

ये    सोने    की     चिड़िया      चहकेगी    कैसे,
हर     डाल पर    शिकारियों  ने   तीर   साधे  हैं|

"रजनी  मल्होत्रा नैय्यर ".