तेरे ख्याल से कर लिए दिल को रौशन,
मगर डर है ज़ुबां पर लाएँ तो कैसे ?
जल रहा दिया अब तक अपनी तकदीर से,
मगर डर है छोड़ तूफान में जाएँ तो कैसे ?
करने लगे हैं हर तरफ अब ग़म पहरेदारी ,
खुशियाँ घर में आएँ तो कैसे ?
मुफ़लिसी बन गयी जिनका उमरभर का साथ ,
वो ईद और दिवाली मनाएँ तो कैसे ?
बहुत कुछ बदल दिया मगरीब की हवा ने,
पर अपनी तहज़ीब :रजनी" भुलाएँ तो कैसे ?
मगर डर है ज़ुबां पर लाएँ तो कैसे ?
जल रहा दिया अब तक अपनी तकदीर से,
मगर डर है छोड़ तूफान में जाएँ तो कैसे ?
करने लगे हैं हर तरफ अब ग़म पहरेदारी ,
खुशियाँ घर में आएँ तो कैसे ?
मुफ़लिसी बन गयी जिनका उमरभर का साथ ,
वो ईद और दिवाली मनाएँ तो कैसे ?
बहुत कुछ बदल दिया मगरीब की हवा ने,
पर अपनी तहज़ीब :रजनी" भुलाएँ तो कैसे ?
12 comments:
वाह,,,,,बहुत उम्दा गजल,,,,रजनी जी,,,
RECENT POST: तेरी फितरत के लोग,
उम्दा ग़ज़ल!
बेहद उम्दा ग़ज़ल बधाई स्वीकारें यहाँ भी पधारें www.arunsblog.in
गमों की जब पहरेदारी हटेगी तब ही खुशियाँ आ सकती हैं
एक नई दिशा देती पंक्ति ,
और लाख जमाना बदल जाय हम अपनी तहजीब नही भुला सकते!
नातिक मूल्यों से सरोकार दर्शाती अभिव्यक्ति!
साधुवाद!
Aapsabhi ko shukriya .........
बहुत बढ़िया रचना
अच्छी गज़ल...
अनु
Dar hai ki jubaan pe laayein to akissee.....Waah
bahut hisundar...
कमाल की गजल..
बहुत ही बढियां....
:-)
सुंदर अति सुंदर एक नजर इधर भी... http://www.kuldeepkikavita.blogspot.com
कमाल की गजल..
बहुत बढ़िया रचना
:-)
बहुत सुन्दर शव्दों से सजी है आपकी गजल ,उम्दा पंक्तियाँ .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
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