एक ग़ज़ल महबूब के नाम ..........
हो जाती ग़ज़ल खिलकर गुलाब सी,
एक बार वो फिर से दीदार दे जाते |
हो जाती मदहोश लिपट कर "चांदनी रात"
संग जागकर फिर वही ख़ुमार दे जाते |
ले जाते मेरी भीनी सी खुशबू की सौगात
एक बार पहलू में आकर वो प्यार दे जाते |
मुरझा गयी हैं कलियाँ बिन बागवान के,
उन कलियों को फिर वही बहार दे जाते |
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "
हो जाती ग़ज़ल खिलकर गुलाब सी,
एक बार वो फिर से दीदार दे जाते |
हो जाती मदहोश लिपट कर "चांदनी रात"
संग जागकर फिर वही ख़ुमार दे जाते |
ले जाते मेरी भीनी सी खुशबू की सौगात
एक बार पहलू में आकर वो प्यार दे जाते |
मुरझा गयी हैं कलियाँ बिन बागवान के,
उन कलियों को फिर वही बहार दे जाते |
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "
8 comments:
वाह ,,,क्या बात है बहुत सुंदर गजल,,,रजनी जी,,
RECENT POST ...: यादों की ओढ़नी
गजलों कि रचना में सदा कि तरह सुनहरा दखल भावविभोर कर देती है आपकी गजल |
bahut bahut shukriya aap sabhi ko is sneh ke liye ......
बहुत ही अच्छा लिखा आपने .
बहुत खूब..
बहुत प्यारी,और मनभावन गजल..
शानदार..
:-)
behtreen gazal...
एक बार वो फिर से दीदार दे जाते …
बहुत ख़ूबसूरत !
रजनी मल्होत्रा नैय्यर जी
अच्छी रचना अच्छे भाव !
ग़ज़ल के बहुत क़रीब है … अच्छे काव्य-प्रयास के लिए बधाई !
लिखती रहें … और श्रेष्ठ लिखती रहें …
शुभकामनाओं सहित…
Hardik aabhar aap sabhi ko yahan tak aayen, mai kuchh samay se blog zagat se dur rahi .......
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