ग़मगीन बेसहारों के घर को आबाद करें,
कुछ पल ही सही यतीमों को शाद करें |
ता -दम -ए ज़ीस्त नेकी में बर्बाद करें ,
शायिस्तगी हो सब में फरियाद करें |
बन कर शब माह तारीकी को बर्बाद करें,
सहराई को गुलशन सा आबाद करें|
दर्दमंदों के खिदमत में आगे हाथ करें,
बाद मरने के भी "रजनी" लोग याद करें |
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
कुछ पल ही सही यतीमों को शाद करें |
ता -दम -ए ज़ीस्त नेकी में बर्बाद करें ,
शायिस्तगी हो सब में फरियाद करें |
बन कर शब माह तारीकी को बर्बाद करें,
सहराई को गुलशन सा आबाद करें|
दर्दमंदों के खिदमत में आगे हाथ करें,
बाद मरने के भी "रजनी" लोग याद करें |
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
8 comments:
उत्कृष्ट प्रस्तुति |
शुभकामनायें ||
bahut behtreen:)
Ravikar ji........
Mukesh ji.........hardik aabhar .....
बहुत सुन्दर भावप्रणव रचना!
शेअर करने के लिए आभार!
सच कहा आपने अपने जाने के बाद यदि कुछ परोपकारी काम किया हो तो वही याद रखा जाता है ..
बहुत सुन्दर सार्थक प्रस्तुति
ग़मगीन बेसहारों के घर को आबाद करें,
कुछ पल ही सही यतीमों को शाद करें |
बहुत खूब ममता भाव प्रस्तुत किया है उपरोक्त शेर में। यूँ तो पूरी ग़ज़ल अच्छी है पर ये शेर सब से ज्यादा स्पर्श कर गया।
Why ? your poem is so full of life..
aap sabhi ki aabhari hun,par bimar hone ke karan kayi dino k baad aaj blog par aaayi hun.........
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