हौसलों के चट्टान को तोड़ देते हैं नाउम्मीदी के पत्थर
उम्मीदों के दीये जलने के लिए लड़ जाते हैं तूफान से
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चल पड़ते हैं क़दम बेख़ौफ़ हर रास्ते पर
मेरे अज़ीज़ों की दुआएं काम आती हैं
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राह ऐसे नही सुगम होते हैं हर मंजिल के
कहीं पत्थर कहीं पर्वत कहीं जंगल भी मिलते हैं
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उम्मीदों के दीये जलने के लिए लड़ जाते हैं तूफान से
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चल पड़ते हैं क़दम बेख़ौफ़ हर रास्ते पर
मेरे अज़ीज़ों की दुआएं काम आती हैं
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राह ऐसे नही सुगम होते हैं हर मंजिल के
कहीं पत्थर कहीं पर्वत कहीं जंगल भी मिलते हैं
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6 comments:
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (09.10.2015) को "किसानों की उपेक्षा "(चर्चा अंक-2124) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ, सादर...!
ये दुआए ही बहुत काम आती है.
बहुत सुंदर .
नई पोस्ट : मर्सिया गाने लगे हैं
Bahut bahut aabhar aap sabhi ko
Aabhar ...
AAp sabhi ko aabhar
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