जब गीत तिरंगे की शान में गाने लगे,
कुछ लोग सियासत की आग भड़काने लगे.
जब पूछा गया शहीदों का नाम और पता,
चोर - उचक्के नाम अपना लिखाने लगे.
जूठे बर्तनों को माँजकर जिन्हें थी पाली ,
कह मुस्काने लगी, मेरे बच्चे कमाने लगे .
वक़्त ने चाल ही कुछ ऐसी बदली ,
संभल कर चलनेवाले भी, मुंह की खाने लगे,
सुना जबसे होते हैं दीवारों के भी कान,
हम दास्ताँ अपनी , दीवारों को सुनाने लगे .
छोड़ दिया साथ , तक़दीर ने ज़माने से मिलकर ,
मन में हौसलों के दिये जगमगाने लगे .
कोयले की खान से घुम कर जो आ गए,
काजल की कोठरी से दामन बचाने लगे,
जब भी कहा ख्वाहिशों से बातें तहज़ीब की,
मुझसे रूठ कर वो, मुंह मोड़ जाने लगे .
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
6 comments:
प्रभावी प्रस्तुति-
आभार आदरेया -
बहुत उम्दा प्रभावी गजल...
Recent Post: सर्वोत्तम कृषक पुरस्कार,
आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (20-03-13) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
सूचनार्थ |
Aap sabhi ko mera hardik aabhar ..
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,आभार.
बहुत सटीक और प्रभावी अभिव्यक्ति...
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