गुरुवार, दिसंबर 20, 2012

सरस्वती वंदना

सरस्वती वंदना

मां    शारदे,     वीणाधारी     हे  श्वेत   कमल आसिनी ,
हे     ज्ञान   की     देवी,    श्वेत   पुष्प    अभिलाषिनी

संसार के मानस हो गए धूसरित ,खोकर व्यभिचार में
कर   दो    अपने  ज्ञान की     बारिश, अज्ञानी संसार में
 
कर जोड़    है विनय निवेदन , चरण   कमल में  आपकी
लाज    रखो ज्ञान की    देवी  संसार से 
नाश करो पाप की 

हो    गए     हैं सभी    नेत्रविहीन,   भोग    के   प्रकाश से
करते   जा   रहे कर्म     अनैतिक , रोको      ऐसे   राह से

छा    गया है   दुराचार क्यों ? अज्ञानियों   के  आचार में
न   चित सयंम , न   वाक् संयम, न  संयम व्यवहार में

हे    बुधिज्ञान       प्रदायिनी , हे     मधुर    कंठ   दायिनी
भावयुक्त     साधना    की   , अमोघ    फल     प्रदायिनी

सुर -    मुनि    मानस पाने   को    कला  ज्ञान - विज्ञान
कर    वंदन  ,   नित    करें    तेरे    चरणों    का    ध्यान

हत्यारे     वाल्मीकि    को      दिया   तूने , उत्तम  ज्ञान
रामचरित    की    रचना    कर   पाई   जग  में सम्मान

माँ   शारदे   "रजनी"    को  भी  दो नैतिकता का ज्ञान
आई    मां शरण आपकी ,रहे   मेरा   सत्कर्मों में ध्यान

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "
बोकारो थर्मल (झारखण्ड)