शनिवार, दिसंबर 22, 2012

नारी सिर्फ एक मादा देह नहीं |

नारी   सिर्फ एक मादा  देह नहीं ,
 प्रकृति की सुन्दरतम रचना है |
जैसे  तुम हो पुतले  ,
हाड़ मास  के बने हुए |
जीती , जागती , साँस लेती है ,
वो भी बिलकुल  तुम्हारी  तरह |
कैसे समझ लिया नारी  को,
 सिर्फ भोग की वस्तु ?
जब चाहा रौंद डाला |
इससे तुम्हारी पुरुषता
उसी दिन नामर्दी में तब्दील हो गयी ,
जिस दिन किया ,
 किसी अबला के हया को तार -तार |
भूल गए शायद ?
तुम्हारे अस्तित्व का कारण भी ,
वो ही है एक मादा देह |
फिर कैसे मिलाते हो ,
नज़रें , किसी से ?
जो अपने कमजोरी को ,
पुरुषत्व समझ कर समझता है,
 एक निरीह  को रौंद कर ,
अपनी मर्दानगी साबित  कर दी  है ,
धिक्कार है ऐसे कापुरुषों पर,
अपनी ही रचना पर आज प्रकृति  क्यों है मौन ?
अबला के जख्म पर दे ऐसी मरहम ,
ऐसे कापुरुषों का  पुरूषत्व
कई सदियों तक न जागे  |

गुरुवार, दिसंबर 20, 2012

सरस्वती वंदना

सरस्वती वंदना

मां    शारदे,     वीणाधारी     हे  श्वेत   कमल आसिनी ,
हे     ज्ञान   की     देवी,    श्वेत   पुष्प    अभिलाषिनी

संसार के मानस हो गए धूसरित ,खोकर व्यभिचार में
कर   दो    अपने  ज्ञान की     बारिश, अज्ञानी संसार में
 
कर जोड़    है विनय निवेदन , चरण   कमल में  आपकी
लाज    रखो ज्ञान की    देवी  संसार से 
नाश करो पाप की 

हो    गए     हैं सभी    नेत्रविहीन,   भोग    के   प्रकाश से
करते   जा   रहे कर्म     अनैतिक , रोको      ऐसे   राह से

छा    गया है   दुराचार क्यों ? अज्ञानियों   के  आचार में
न   चित सयंम , न   वाक् संयम, न  संयम व्यवहार में

हे    बुधिज्ञान       प्रदायिनी , हे     मधुर    कंठ   दायिनी
भावयुक्त     साधना    की   , अमोघ    फल     प्रदायिनी

सुर -    मुनि    मानस पाने   को    कला  ज्ञान - विज्ञान
कर    वंदन  ,   नित    करें    तेरे    चरणों    का    ध्यान

हत्यारे     वाल्मीकि    को      दिया   तूने , उत्तम  ज्ञान
रामचरित    की    रचना    कर   पाई   जग  में सम्मान

माँ   शारदे   "रजनी"    को  भी  दो नैतिकता का ज्ञान
आई    मां शरण आपकी ,रहे   मेरा   सत्कर्मों में ध्यान

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "
बोकारो थर्मल (झारखण्ड)

सोमवार, दिसंबर 17, 2012

चांदनी रात मिलती रहे |


जीवन की आपाधापी  के ,
उठते  हुए    बादल     से,  
अहसास  की   धरा    पर,
उम्मीद की फ़सल खिलती रहे |

घुमड़ते   हुए  ख्याल  ,
कुछ उलझे से  सवाल,
कभी बूंद बनकर बरसे ,
कभी ज्योति सी  जलती  रहे  |

जुगनुओं सी भटकाव में,
कुछ धूप  में कुछ छाँव में ,
असंख्य   अनुभूतियाँ
जीवन  में मिलती रहे |


अश्रुपूरित नयन  लिए ,
कभी उल्लसित तरंग लिए
एक सम्पूर्ण गगन लिए,
विह्वल ,आकुल चातक से
चांदनी रात  मिलती रहे |

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "