थम गया दंगा, कत्ल हुआ आवाम का ,
आ गए घर जलानेवाले , हाथों में मरहम लिए |
तारीकी के अंजुमन में, साज़िश की गुफ़्तगू,
आ गए सुबह अमन का , हाथों में परचम लिए |
सज़ावार जो हैं, "रजनी" वो खतावार भी,
आ गए चेहरे पर डाले नक़ाब ,हाथों में दरपन लिए |
आ गए घर जलानेवाले , हाथों में मरहम लिए |
तारीकी के अंजुमन में, साज़िश की गुफ़्तगू,
आ गए सुबह अमन का , हाथों में परचम लिए |
सज़ावार जो हैं, "रजनी" वो खतावार भी,
आ गए चेहरे पर डाले नक़ाब ,हाथों में दरपन लिए |
5 comments:
अच्छी रचनाएँ हैं
वाह,,,,,, बहुत खूब,,,,रजनी जी,,,,,
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वाह अति सुन्दर बेहतरीन रचना
सच कहा है ... पहले घर जलाते हैं फिर मरहम लगाते हैं ...
वाह ... बेहतरीन ।
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