रविवार, अप्रैल 29, 2012

मज़दूर हूँ अपनी मजबूरी बोल रहा हूँ






मजदूर के दर्द पर मेरी एक रचना जो बहुत पहले लिखी थी, आज आप सभी के बीच साझा कर रही

आज    दिल  का    दर्द    घोल    रहा   हूँ,
मज़दूर  हूँ अपनी मजबूरी  बोल  रहा   हूँ |

ग़रीबी      मेरा     पीछा   नहीं       छोड़ती,
क़र्ज़    को   कांधे पर   लादे   डोळ  रहा हूँ |

पसीने   से तर -ब -तर   बीत   रहा  है  दिन,
रात पेट  भरने को नमक  पानी  घोल रहा हूँ |

आज    दिल     का   दर्द    घोल     रहा   हूँ,
मज़दूर    हूँ   अपनी    मजबूरी  बोल  रहा हूँ |

बुनियाद   रखता    हूँ  सपनों    की   हर  बार,
टूटे    सपनों   के    ज़ख्म   तौल    रहा     हूँ |

मज़दूरी   का   बोनस     बस      सपना    है,
सपनों   से   ही   सारे    अरमान   मोल  रहा हूँ|

रजनी नैय्यर मल्होत्रा





























































10 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत सुंदर प्रस्तुति,..बेहतरीन रचना

MY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत सुंदर प्रस्तुति,..बेहतरीन रचना

MY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....

mridula pradhan ने कहा…

bhawpoorn......

udaya veer singh ने कहा…

बहुत सुंदर प्रस्तुति,..बेहतरीन रचना

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

भावप्रवण रचना

सदा ने कहा…

बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

Aaap sabhi ke sneh ka shukriya ......

रचना दीक्षित ने कहा…

भावप्रधान और सामाजिक सरोकारों के प्रति संवेदना प्रकट करती सुंदर प्रस्तुति.

बधाई रजनी जी.

Pallavi saxena ने कहा…

भावपूर्ण सार्थक रचना....

bkaskar bhumi ने कहा…

रजनी जी नमस्कार...
आपके ब्लॉग 'चांदनी रात' से कविता भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 9 अगस्त को 'मजदूर हूँ अपनी मजबूरी बोल रहा हूँ...' शीर्षक के कविता को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव