मजदूर के दर्द पर मेरी एक रचना जो बहुत पहले लिखी थी, आज आप सभी के बीच साझा कर रही
आज दिल का दर्द घोल रहा हूँ,
मज़दूर हूँ अपनी मजबूरी बोल रहा हूँ |
ग़रीबी मेरा पीछा नहीं छोड़ती,
क़र्ज़ को कांधे पर लादे डोळ रहा हूँ |
पसीने से तर -ब -तर बीत रहा है दिन,
रात पेट भरने को नमक पानी घोल रहा हूँ |
आज दिल का दर्द घोल रहा हूँ,
मज़दूर हूँ अपनी मजबूरी बोल रहा हूँ |
बुनियाद रखता हूँ सपनों की हर बार,
टूटे सपनों के ज़ख्म तौल रहा हूँ |
मज़दूरी का बोनस बस सपना है,
सपनों से ही सारे अरमान मोल रहा हूँ|
रजनी नैय्यर मल्होत्रा
10 comments:
बहुत सुंदर प्रस्तुति,..बेहतरीन रचना
MY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....
बहुत सुंदर प्रस्तुति,..बेहतरीन रचना
MY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....
bhawpoorn......
बहुत सुंदर प्रस्तुति,..बेहतरीन रचना
भावप्रवण रचना
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
Aaap sabhi ke sneh ka shukriya ......
भावप्रधान और सामाजिक सरोकारों के प्रति संवेदना प्रकट करती सुंदर प्रस्तुति.
बधाई रजनी जी.
भावपूर्ण सार्थक रचना....
रजनी जी नमस्कार...
आपके ब्लॉग 'चांदनी रात' से कविता भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 9 अगस्त को 'मजदूर हूँ अपनी मजबूरी बोल रहा हूँ...' शीर्षक के कविता को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव
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