शुक्रवार, मार्च 02, 2012

कोख के चिराग़ को

हर बात ,
घुमती रही उसके ज़ेहन में
सारी रात,
कहीं कल का सवेरा
न बुझा दे,
मेरी कोख के चिराग़ को
अगर फिर से कट गयी
मेरे कोख में बेटी |

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"

7 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

सशक्त रचना,...रजनी जी ..बधाई
इसी आशय पर लिखी मेरी पुरानी पोस्ट "वजूद"पढे,
एक निवेदन,..कमेंट्स मिलने पर,कमेंट्स दे,यही ब्लोगजगत का शिष्टाचार और व्योहार है,अन्यथा न ले...

NEW POST ...काव्यान्जलि ...होली में...

Rakesh Kumar ने कहा…

मार्मिक,हृदयस्पर्शी.

दिल को छूती और कचोटती हुई प्रस्तुति.

क्या कहूँ,शब्दहीन हूँ बस.

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बेहतरीन रचना

सादर

sangita ने कहा…

सशक्त रचना,...रजनी जी ..बधाई

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

बहुत खूब....
दिल को कहीं छु गयी...!!
मर्मस्पर्शी..

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

Aap sabhi ko mera hardik aabhar.......

sath hi hOLI ki shubhkamnayen......

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

Aap sabhi ko mera hardik aabhar.......

sath hi hOLI ki shubhkamnayen......