हर बात ,
घुमती रही उसके ज़ेहन में
सारी रात,
कहीं कल का सवेरा
न बुझा दे,
मेरी कोख के चिराग़ को
अगर फिर से कट गयी
मेरे कोख में बेटी |
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
घुमती रही उसके ज़ेहन में
सारी रात,
कहीं कल का सवेरा
न बुझा दे,
मेरी कोख के चिराग़ को
अगर फिर से कट गयी
मेरे कोख में बेटी |
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
7 comments:
सशक्त रचना,...रजनी जी ..बधाई
इसी आशय पर लिखी मेरी पुरानी पोस्ट "वजूद"पढे,
एक निवेदन,..कमेंट्स मिलने पर,कमेंट्स दे,यही ब्लोगजगत का शिष्टाचार और व्योहार है,अन्यथा न ले...
NEW POST ...काव्यान्जलि ...होली में...
मार्मिक,हृदयस्पर्शी.
दिल को छूती और कचोटती हुई प्रस्तुति.
क्या कहूँ,शब्दहीन हूँ बस.
बेहतरीन रचना
सादर
सशक्त रचना,...रजनी जी ..बधाई
बहुत खूब....
दिल को कहीं छु गयी...!!
मर्मस्पर्शी..
Aap sabhi ko mera hardik aabhar.......
sath hi hOLI ki shubhkamnayen......
Aap sabhi ko mera hardik aabhar.......
sath hi hOLI ki shubhkamnayen......
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