रविवार, जनवरी 29, 2012

बाक़ी है हर तहजीब पुरानी अभी तक गाँव में

बाक़ी है हर  तहजीब पुरानी  अभी तक  गाँव में,
जिस्म से हैं शहरों में बूढ़े जान अभी तक गाँव में.


फ़ैल गया  नफ़रत का ज़हर शहर के धूप-छाँव में,
प्रेम का पौधा फला  खड़ा  है  अभी  तक गाँव  में .

ईमेल   और  चैट  पर होती   है  शहरी  गुफ़्तगू,
डाकिये की राह देखें  लोग  अभी  तक  गाँव  में.

कट रहे   पेड़  शहरों में  अंधी  भौतिक   दौड़  में,
पूजते है  लोग नीम ,पीपल   अभी  तक गाँव  में.

उफ़न -उफ़न आती थी एक  पगली नदी की  धारा,
बरसात  में  सबको  डराती है  अभी  तक  गाँव में.

 नए जमाने को पसंद  डिस्को, पब, चाईनीज़, थाई,
 पुवों-पकवानों की महक आती है अभी  तक गावं में.

दिन  ढले   तक  सोते  हैं ये  मगरिब को ढोने वाले,
तड़के  ही उठ  जाते  हैं लोग  अभी  तक   गाँव  में.
रजनी मल्होत्रा  नैय्यर

गुरुवार, जनवरी 19, 2012

बहुत रंग हैं जीवन के, जिसमे ग़म का रंग गहरा है


बहुत रंग हैं जीवन के, जिसमे ग़म  का  रंग गहरा है
खुशियों के    सांचों   पर तो,    ग़मों का  ही   पहरा  है

ये    मदमस्त   समीर      तू    छेड़    कोई  तराना
जिसमे   न  बचे   दुहराने को       कोई   अफ़साना

तेरे   संग   हम   भी चलो   वहां  तक    चल   जायें
कोई   भी    ग़म मुझे  जहाँ   का    न रुलाये   सताये

ख़ुद  ही   हमने   ख़ुद  को   इतने   ज़ख्म     लगाये
अब  तो  असह्य है ये  पीड़ा जो अब  सही  न   जाये

न   जाने  ये कैसी  पीड़ा   है जो   कभी   दब जाती है
 कभी-  कभी  मन  के अग्न  को  और    बढ़ाती    है

क्यों खुशियों   के साथ    ग़मों का   भी   समावेश  है ?
क्यों हर   ज़िंदगी में   कुछ- कुछ इसका   भी प्रवेश है ?

बहुत   रंग हैं जीवन   के जिसमे   ग़म का रंग गहरा है,
खुशियों   के     सांचों  पर   तो  ग़मों   का   ही  पहरा है


किसकी अब बात हो, करे  किस पर    यकीं   ज़माना,
अपने   बेगाने  सभी    दे देते हैं ग़म    का     नज़राना

ये ग़म    हर   ज़ख्म   पर    मरहम         लगाता     है
 कुछ पल करता  चोट उसी   से     जीना  सिखाता   है


बहुत    रंग  हैं जीवन   के,  जिसमे   ग़म का रंग गहरा है
ख़ुशियों    के  सांचे    पर    तो   ग़मों  का    ही  पहरा   है

ग़म  से भागते हैं    इससे        ही     जीवन   रुपहला   है
बहुत    रंग हैं   जीवन के   जिसमे गम का रंग गहरा   है 

सोमवार, जनवरी 09, 2012

मेरी ज़िन्दगी की हसीं शाम कर दो

मेरी   ज़िन्दगी की  हसीं शाम कर दो
अपनी  एक ग़ज़ल  मेरे नाम   कर दो.

 उठते  नहीं शर्म-ओ हया     से   चश्म
या रब,मेरे जज़्बात लब-ए-बाम कर दो.

बहुत  फासले हैं  दरमियाँ  मेरे  तुम्हारे
सदा के  लिए  क़िस्सा    तमाम कर दो.

कब तक छुपाये  रखोगे गोशा-ए-दिल में
राज़-ए-दिल  आज चर्चा-ए-आम कर दो.


तग्ज्जुल   कहाँ रह गयी आज ग़ज़लों में,
 "रजनी "  तुम्हीं  यह  नेक  काम कर दो .


"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "











गुरुवार, जनवरी 05, 2012

रफ़्ता रफ़्ता ख़ुदकशी का मज़ा हमसे पूछिये

रफ़्ता रफ़्ता ख़ुदकशी का   मज़ा हमसे पूछिये
वफ़ा के बदले  मिलती  है जफा , हमसे पूछिये.

 हर  साँस में  बस जाये  जो धड़कन  बन  कर
उसे  ताउम्र न भूल पाने की ख़ता हमसे पूछिये.


एक  बार   में   कैसे   पी जाते  हैं जाम  लोग
घूंट -घूंट  कर  पीने  का  मज़ा  हमसे  पूछिये.


दोस्त  भी दोस्ती नहीं  निभाते  हैं  आजकल
दुश्मनों से भी निभाने की अदा  हमसे पूछिये.

क़ातिलों को दे  दी रिहाई ,  उम्र क़ैद ख़ुद को
मेरी ये     सादगी  लिल्लाह   हमसे  पूछिये.