तुझे मुझसे जितनी नफरत है,
तेरी उतनी ही मुझे जरुरत है.मिसरी भरी निगाहें ही मीठी नहीं होती,
तेरे अंगार भरे निगाहें भी खुबसूरत हैं.
कैसे कह दूँ कोई खैर करता नहीं,
इस नफरत में जलना तेरी प्रीत या फितरत है.
घिरे हों जब आँखों में अविश्वास के बादल,
हर अच्छी बातें भी लगती बदसूरत हैं.
जो ख्वाब बुनते हैं हम लगन से,
वो टूट कर भी रहते खुबसूरत हैं.
जानती हूँ कोई तोड़ नहीं पायेगा,
फिर भी तुमसे टूटना मेरी किस्मत है.
बंध कर और नहीं रहा जायेगा,
अब तो टूट कर बिखरने की चाहत है.
डूब रही मेरी कस्ती तेरे ही हाथों,
ये जानकर भी डूबना मेरी जरूरत है.
जितनी तुझे मुझसे नफरत है,
तेरी उतनी ही मुझे जरुरत है|
11 comments:
बहुत खूबसूरत कविता रजनी जी ,पूरे इलाहबाद के रंग में रंगी कविता बधाई और शुभकामनायें
बहुत खूबसूरत कविता रजनी जी ,पूरे इलाहबाद के रंग में रंगी कविता बधाई और शुभकामनायें
bahut achha laga tusar ji aapka mere blog tak aana .........hardik aabar
बहुत खूबसूरत कविता.......
रजनी मल्होत्रा नैयर जी!
इस खूबसूरत ग़ज़ल को पढ़वाने के लिए आभार!
बहुत बढ़िया ....उम्दा पंक्तियाँ
सभी पंक्तियाँ विचारणीय भाव संजोये हैं..... बहुत बढ़िया
लाजवाब गज़ल ... टूटे हुवे ख्वाब अच्छे लहते अहिं हमेशा .. अपने जो होते हैं ...
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तुझे मुझसे जितनी नफरत है, मुझे तेरी उनी ज़रुरत है.... प्यार और आस्था को अभिव्यक्त करती बेमिसाल पंक्तियाँ।
उनी को उतनी ** पढ़ा जाए
संध्या जी हार्दिक आभार .......
शाश्त्री जी बहुत बहुत आभार.....
मोनिका जी आपको भी आभार ....
संजय भाई शुक्रिया आपको भी....
नाशवा जी आभार आपको भी यहाँ तक आने भी लिए ....
दिव्या जी हार्दिक शुक्रिया......
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