गुरुवार, सितंबर 08, 2011

अब तो टूट कर बिखरने की चाहत है

   तुझे मुझसे जितनी  नफरत है,
  तेरी उतनी ही  मुझे  जरुरत है.

 मिसरी भरी निगाहें ही मीठी नहीं होती,
 तेरे अंगार भरे निगाहें भी खुबसूरत हैं.

 कैसे कह दूँ कोई खैर करता नहीं,
 इस नफरत में जलना तेरी प्रीत या फितरत है.

घिरे हों जब आँखों में अविश्वास के बादल,
हर अच्छी बातें भी लगती बदसूरत हैं.

जो ख्वाब बुनते हैं हम लगन से,
वो टूट कर भी रहते खुबसूरत हैं.

जानती हूँ कोई तोड़ नहीं पायेगा,
फिर भी तुमसे टूटना मेरी किस्मत है.

बंध कर और नहीं रहा जायेगा,
अब तो टूट कर बिखरने की चाहत है.

डूब रही मेरी कस्ती तेरे ही हाथों,
ये जानकर भी डूबना मेरी जरूरत है.

जितनी तुझे मुझसे नफरत है,
तेरी उतनी ही मुझे जरुरत है|

11 comments:

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

बहुत खूबसूरत कविता रजनी जी ,पूरे इलाहबाद के रंग में रंगी कविता बधाई और शुभकामनायें

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

बहुत खूबसूरत कविता रजनी जी ,पूरे इलाहबाद के रंग में रंगी कविता बधाई और शुभकामनायें

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

bahut achha laga tusar ji aapka mere blog tak aana .........hardik aabar

संध्या शर्मा ने कहा…

बहुत खूबसूरत कविता.......

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

रजनी मल्होत्रा नैयर जी!
इस खूबसूरत ग़ज़ल को पढ़वाने के लिए आभार!

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत बढ़िया ....उम्दा पंक्तियाँ

संजय भास्‍कर ने कहा…

सभी पंक्तियाँ विचारणीय भाव संजोये हैं..... बहुत बढ़िया

दिगम्बर नासवा ने कहा…

लाजवाब गज़ल ... टूटे हुवे ख्वाब अच्छे लहते अहिं हमेशा .. अपने जो होते हैं ...

ZEAL ने कहा…

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तुझे मुझसे जितनी नफरत है, मुझे तेरी उनी ज़रुरत है.... प्यार और आस्था को अभिव्यक्त करती बेमिसाल पंक्तियाँ।

ZEAL ने कहा…

उनी को उतनी ** पढ़ा जाए

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

संध्या जी हार्दिक आभार .......
शाश्त्री जी बहुत बहुत आभार.....
मोनिका जी आपको भी आभार ....
संजय भाई शुक्रिया आपको भी....
नाशवा जी आभार आपको भी यहाँ तक आने भी लिए ....

दिव्या जी हार्दिक शुक्रिया......