शनिवार, सितंबर 03, 2011

क्यों इंसां समझ पाए न इंसां के पीर को

ये    बारिश    का   पानी   है   या  आँखों   की  नमी   है,
रोया      है    आसमां,  और     भीगी         ज़मीं      है .

समझ   जाता   है  बादल   कैसे     धरा   की  पीर   को,
क्यों   इंसां   समझ न     पाए    इंसां      के   पीर   को.

कोई     फ़र्क़     नहीं आया    मौसम    की अंगड़ाई  में,
न   जेठ   की    तपती    धूप   में ,  न हवा    पुरवाई में.

बादल    के  गर्ज    में  बिजली      साथ    निभाती   है,
रोता   है   आसमां,         ज़मीं     भीग       जाती   है.

हटता    जा रहा    इंसां   क्यों अपने   फ़र्ज़ के राहों   से,
काट   रहा  अपनी    हथेली    ख़ुद    अपनी   बांहों   से.

मुड़कर    देखें गर हम पीछे,  कौन सा  बंधन तोड़  आये ,
जो भी मिली  विरासत  में , उसे  भौतिकता में छोड़ आये.

एक घर  के        मातम    में     सारा  गाँव    रोता   था,
एक  फर्द के दर्द-ओ -ग़म   में   सब      साथ    होता  था .

साथ        होकर     भी    हैं     लोग   अकेले      आज,
इस   कमरे से     उस  कमरे    तक जाये   ना  आवाज़.

करते    जा रहे    ख़ुद    ही भूल कहते समय का फेर है,
रोक   लो क़दम  फ़ना   से   पहले   हुई अभी ना देर है.

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "







16 comments:

Arvind kumar ने कहा…

वाह ! क्या बात है...

Roshi ने कहा…

bahut sunder aur sach bhi hai.........

मदन शर्मा ने कहा…

बेशक अच्छी एवँ भावपूर्ण कविता !!!!

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

abhishek ji bahut bahut aabhar sarahna ke liye......

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

Roshi ji hardik aabhar....

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

Madan ji hardik aabhar.........sneh bana rahe

ZEAL ने कहा…

bahut sateek likha hai rajni ji ...badhaii.

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

divya ji hardik aabhar aapka.........

S.N SHUKLA ने कहा…

सटीक और शानदार प्रस्तुति , आभार

कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें .

virendra ने कहा…

koyee fark naheen aayaa mausam kee angdaayee men .
kyaa khub likhaa badhaayee

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

hardik aabhar sukla ji.......mere blog tak aane k liye....

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

virendra ji aapka bhi sukriya ....aapke blog par bhi aana hoga ..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

यह ग़ज़ल भी बहुत अच्छी है!
आप ग़ज़ल लिखने में सिद्धहस्त है जी!

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

hardik aabhar shastri ji.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

हर शेर में अलग बयानी नज़र आ रही है ... तीखी धारदार शेर ....

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

hardik aabhar sir ji .....