ये बारिश का पानी है या आँखों की नमी है,
रोया है आसमां, और भीगी ज़मीं है .
समझ जाता है बादल कैसे धरा की पीर को,
क्यों इंसां समझ न पाए इंसां के पीर को.
कोई फ़र्क़ नहीं आया मौसम की अंगड़ाई में,
न जेठ की तपती धूप में , न हवा पुरवाई में.
बादल के गर्ज में बिजली साथ निभाती है,
रोता है आसमां, ज़मीं भीग जाती है.
हटता जा रहा इंसां क्यों अपने फ़र्ज़ के राहों से,
काट रहा अपनी हथेली ख़ुद अपनी बांहों से.
मुड़कर देखें गर हम पीछे, कौन सा बंधन तोड़ आये ,
जो भी मिली विरासत में , उसे भौतिकता में छोड़ आये.
एक घर के मातम में सारा गाँव रोता था,
एक फर्द के दर्द-ओ -ग़म में सब साथ होता था .
साथ होकर भी हैं लोग अकेले आज,
इस कमरे से उस कमरे तक जाये ना आवाज़.
करते जा रहे ख़ुद ही भूल कहते समय का फेर है,
रोक लो क़दम फ़ना से पहले हुई अभी ना देर है.
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "
रोया है आसमां, और भीगी ज़मीं है .
समझ जाता है बादल कैसे धरा की पीर को,
क्यों इंसां समझ न पाए इंसां के पीर को.
कोई फ़र्क़ नहीं आया मौसम की अंगड़ाई में,
न जेठ की तपती धूप में , न हवा पुरवाई में.
बादल के गर्ज में बिजली साथ निभाती है,
रोता है आसमां, ज़मीं भीग जाती है.
हटता जा रहा इंसां क्यों अपने फ़र्ज़ के राहों से,
काट रहा अपनी हथेली ख़ुद अपनी बांहों से.
मुड़कर देखें गर हम पीछे, कौन सा बंधन तोड़ आये ,
जो भी मिली विरासत में , उसे भौतिकता में छोड़ आये.
एक घर के मातम में सारा गाँव रोता था,
एक फर्द के दर्द-ओ -ग़म में सब साथ होता था .
साथ होकर भी हैं लोग अकेले आज,
इस कमरे से उस कमरे तक जाये ना आवाज़.
करते जा रहे ख़ुद ही भूल कहते समय का फेर है,
रोक लो क़दम फ़ना से पहले हुई अभी ना देर है.
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "
16 comments:
वाह ! क्या बात है...
bahut sunder aur sach bhi hai.........
बेशक अच्छी एवँ भावपूर्ण कविता !!!!
abhishek ji bahut bahut aabhar sarahna ke liye......
Roshi ji hardik aabhar....
Madan ji hardik aabhar.........sneh bana rahe
bahut sateek likha hai rajni ji ...badhaii.
divya ji hardik aabhar aapka.........
सटीक और शानदार प्रस्तुति , आभार
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें .
koyee fark naheen aayaa mausam kee angdaayee men .
kyaa khub likhaa badhaayee
hardik aabhar sukla ji.......mere blog tak aane k liye....
virendra ji aapka bhi sukriya ....aapke blog par bhi aana hoga ..
यह ग़ज़ल भी बहुत अच्छी है!
आप ग़ज़ल लिखने में सिद्धहस्त है जी!
hardik aabhar shastri ji.
हर शेर में अलग बयानी नज़र आ रही है ... तीखी धारदार शेर ....
hardik aabhar sir ji .....
एक टिप्पणी भेजें