आकाश बरस कर
निरभ्र हो जाता है,
मिल जाता है
उसके रुग्णता को
एक शांत एहसास |
घुमड़ते हुए
बादलों के रूप में
मचलते रहते हैं
उसके मन में भी
असंख्य सवाल |
धरा का स्पर्श
देता है उसे असीम धैर्य
बूंदें पानी की
आकाश से आ
आकाश से आ
ज़मीं पर
ऐसे मिल जाती हैं
ऐसे मिल जाती हैं
मानो हो एक सीमा रेखा
जिसके पाटने से
धरा- अम्बर एक हो गए |
मनुज मन भी
जब व्यथित,भ्रमित
बरसने की चाह में
हो जाता है गुमराह
पाने को
एक स्पर्श कांधे पर
जिसपर टिककर
उसके मन का आकाश भी
निरभ्र हो जाये
5 comments:
धरती और आकाश के रिश्तों का सुंदर चित्रण।
अच्छी रचना।
बधाई हो आपको।
महिला दिवस की शुभकामनाएं।
happy womens day...:)
bahut pyari rachna.......
bahut bahut aabhar aap dono ko.......
बेहद प्रभावशाली रचना लिखी । रजनी जी आपने ।
सार्थक सशक्त अभिव्यक्ति । धन्यवाद ।
रजनी जी Recent Visitors और You might also like यानी linkwithin ये दो विजेट आप आने ब्लाग पर लगा लीजिये । इसको लगाने की जानकारी के लिये आप " ब्लागर्स प्राब्लम " पर
Monday, 7 March 2011 को प्रकाशित ये लेख "आपके ब्लाग के लिये दो बेहद महत्वपूर्ण विजेट " देखिये । धन्यवाद ।
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