ऐसे तो हर एक जंग में होती है शह और मात
हमें अब जीना होगा इस कोरोना के साथ
हाथ मिलाना छोड़कर दोनों हाथों को जोड़िये
अपने संस्कार यही हैं अपवादों को तोड़िये
मास्क लगा कर दूर से करें सब आपस में बात
हमें अब जीना होगा इस कोरोना के साथ
लौट कर सब वापस सनातन संस्कृति में आईये
फ़ास्ट फूड को छोड़ हमेशा देशी व्यंजन खाईये
अदरक हल्दी गिलोय और ले तुलसी का साथ
हमें अब जीना होगा इस कोरोना के साथ
"लारा"
हमें अब जीना होगा इस कोरोना के साथ
हाथ मिलाना छोड़कर दोनों हाथों को जोड़िये
अपने संस्कार यही हैं अपवादों को तोड़िये
मास्क लगा कर दूर से करें सब आपस में बात
हमें अब जीना होगा इस कोरोना के साथ
लौट कर सब वापस सनातन संस्कृति में आईये
फ़ास्ट फूड को छोड़ हमेशा देशी व्यंजन खाईये
अदरक हल्दी गिलोय और ले तुलसी का साथ
हमें अब जीना होगा इस कोरोना के साथ
"लारा"
7 comments:
क्या बात! बहुत बढ़िया कविता है रजनी जी।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 16 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
उपयोगी रचना।
--
वाकई दुखद स्थिति है।
लाकडाउन करने में यदि 4 घंटे का नहीं बल्कि 4 दिन का समय दिया होता तो यह हालत नहीं होती।
आप सभी का आभार 🙏
सही है अब कोरोना के साथ ही जिनकी आदत डालनी होगी
अच्छी रचना.
आप सभी को हृदय से धन्यवाद 🙏
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