शुक्रवार, मई 15, 2020

ऐसे तो हर एक जंग में होती है शह और मात

ऐसे तो हर एक जंग में होती है शह और मात
हमें अब  जीना होगा   इस  कोरोना के  साथ

हाथ मिलाना छोड़कर दोनों हाथों को जोड़िये
अपने संस्कार यही   हैं अपवादों   को  तोड़िये
मास्क लगा कर दूर से करें सब आपस में बात
हमें अब  जीना  होगा  इस  कोरोना  के  साथ

लौट कर  सब वापस सनातन संस्कृति में आईये
फ़ास्ट फूड को छोड़ हमेशा देशी  व्यंजन खाईये
अदरक हल्दी गिलोय और ले तुलसी  का  साथ
हमें अब  जीना   होगा   इस  कोरोना  के  साथ
"लारा"

7 comments:

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

क्या बात! बहुत बढ़िया कविता है रजनी जी।

Digvijay Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 16 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

उपयोगी रचना।
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वाकई दुखद स्थिति है।
लाकडाउन करने में यदि 4 घंटे का नहीं बल्कि 4 दिन का समय दिया होता तो यह हालत नहीं होती।

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

आप सभी का आभार 🙏

सुनीता अग्रवाल "नेह" ने कहा…

सही है अब कोरोना के साथ ही जिनकी आदत डालनी होगी

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

अच्छी रचना.

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

आप सभी को हृदय से धन्यवाद 🙏