रविवार, जून 21, 2015

पिता के लिए एक दिन ....(father's Day par ) दुनिया के हर पिता को समर्पित


एक पिता के काँधे पर 
होता है भार अपनी
सृष्टि का , 
जैसे छत को 
संभाले रखती हैं दीवारें , 
अपनी  मजबूत पकड़ के साथ |
पूर्ण  रूप से निबाहता  है 
अपनी जिम्मेवारियों को ,
हर मौसम पिता के 
लिए होता है चुनौतियों
से भरा | 
जब बच्चों की ख़ुशियाँ 
खरीदने  में 
करना पड़ता है उसे  चुनाव ,
एक के बदले,
कुछेक का त्याग !
वो  पल पिता के लिए 
किसी जंग से कम नही होता |
मर्द का एक दम्भ 
“मर्द को दर्द नहीं होता “ 
करता है एक झूठे आवरण का काम |
जब अपनी भावनाओं
को छिपाने 
के लिए 
लेना पड़ता है पिता  (मर्द )
को झूठा  सहारा , 
छुपाने के लिए 
अपने आंसुओं को
बेटियों के विदाई में |
पिता की निगाहें भी जानती हैं 
कबतक संभालना है 
गौहर का समंदर |
एकांत  देखकर  
बांध हार मान  जाते हैं…
पिता के अंदर भी छुपी
होती है एक मासूम गुड़िया 
जो चलती है वक़्त की चाभी से |
पिता सीख जाता है 
वक़्त का हर सबक |
निराशा से भरी परत को,
झाड़ता है 
अपने धैर्य से
जो धूल सी जमने लगती है 
जीवन के गुलदस्ते में |
वक़्त की थपेड़ों   से कभी 
डगमगाते  हुए धीरज को 
संबल  देता है एक सजीव 
स्पर्श,
जो होती है 
उसके बच्चों की किलकारियों 
के रूप में 
कभी अँगुलियों का स्पर्श |
बच्चों के   ख्वाहिशें  
आसमान हुए  जाते  हैं 
उसकी एक भी इच्छा 
ज़मीन से  उठ नहीं पाती 
बच्चों की खुशियों 
की बोली (डाक ) में 
खुद को नीलाम कर देनेवाला 
वही पिता , 
कुछ बच्चों के  लिए 
 एक बेकार
वस्तु की तरह
 बन जाता है  !

" रजनी मल्होत्रा नैय्यर "