शनिवार, अप्रैल 18, 2015

एक रेखा

मैंने भी खींची थी , 
एक रेखा | 
जिसे,
नाम नही दिया था 
बस इतना पता था, 
इसके घेरे से बाहर जाना है, 
तभी टूटेगी भ्रामक सोच |
हर दिन के साथ 

बढ़ती गयी ,
परिधि रेखा की...
छोटे होते गए 

विकृत विचार, 
अवमाननायें ,
जिसने उद्गार का सोता 

बंद कर दिया था |
पनप चुके 

धधकते  ज्वालामुखी  ने ,
ले लिया था आकार,
बस तलाश थी 

कमजोर ज़मीं की,
एक दिन फूटा ,

सोता उद्गार का
फिर ,
हट गए सारे प्रश्नचिन्ह,
जिसने
मानदंड तय कर रखे थे ,
हर रेखा लक्ष्मण रेखा सी प्रतिबंधित होती है |