शर्त है ये चट्टान भी गिर जाएगी ,मगर,
एक बार हौसलों
की तूफान
को तो लाईये,
ढूंढने पर गीदड़ों
का काफ़िला मिल जायेगा,
एक बार ढूंढने को शहर तो जाईये.
हर बार की तरह ही दम तोड़ती हुई है,
इस बार इस विधि पर रौशनी
तो लाईये
ओहदे के दंभ में जो आसमां
में उड़ रहे,
हकीकत की ज़मीं
पर
उन्हें खींच कर तो लाईये
.
बदले मिजाज़ मौसम के, बदले हालात से
फिर पड़ेंगे ओले जरा सर तो मुड़ायिये .
सोचते हो थम जायेगा
गरजने से ये बवंडर ,
"रजनी" बरसने
को
घटा बनकर तो छाईए,
7 comments:
बहुत उम्दा गजल,,,बधाई रजनी जी,,,,
Recent post: रंग गुलाल है यारो,
सुन्दर प्रस्तुति!
--
ओले पड़ते हैं तभी, जब बादल छा जाय।
गंजा अपने शीश को, कैसे यहाँ बचाय।।
--
आपकी पोस्ट का लिंक आज शुक्रवार के चर्चा मंच पर भी है!
बदले मिजाज मौसम के ,बदले हालात से
फिर पड़ेगे ओले ज़रा सर तो मुदाइये |
बढ़िया पंक्ति
उम्दा रचना |
सुन्दर प्रस्तुति-
aap sabhi ko mera hardik aabhar ..
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
~सादर!!!
एक टिप्पणी भेजें