सोमवार, जनवरी 09, 2012

मेरी ज़िन्दगी की हसीं शाम कर दो

मेरी   ज़िन्दगी की  हसीं शाम कर दो
अपनी  एक ग़ज़ल  मेरे नाम   कर दो.

 उठते  नहीं शर्म-ओ हया     से   चश्म
या रब,मेरे जज़्बात लब-ए-बाम कर दो.

बहुत  फासले हैं  दरमियाँ  मेरे  तुम्हारे
सदा के  लिए  क़िस्सा    तमाम कर दो.

कब तक छुपाये  रखोगे गोशा-ए-दिल में
राज़-ए-दिल  आज चर्चा-ए-आम कर दो.


तग्ज्जुल   कहाँ रह गयी आज ग़ज़लों में,
 "रजनी "  तुम्हीं  यह  नेक  काम कर दो .


"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "