जब भी लिपटती हूँ ,
माँ से ,
मैं बच्ची हो जाती हूँ ,
उन्हीं बचपन की यादों में ,
मीठी लोरी में खो जाती हूँ ।
जीवन की राहों में,
धुप में, छाओं में ,
बुलंदी की मचान पर,
उम्र की ढलान पर ,
एक मजबूत तना हूँ मैं।
पर, माँ के आगे
कमज़ोर लता हो जाती हूँ ।
जब भी निकलती हूँ ,
मैं घर से अकेली
संभल कर जाना,
जल्द आना ,
यही हर बात पर ,
दुहराती है माँ ।
दुनियां की बद्द् नजर से
बचाने को अब भी ,
मुझे ,
काला टीका
लगाती है माँ ।
" रजनी नैय्यर मल्होत्रा "
7 comments:
माँ की बाहों की सिफ़त जन्नत के दर से कम नहीं।
जब तलक एहसास उसका हम हुए बे-दम नहीं॥
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति...आभार और बधाई
यही हर बात पर ,
दुहराती है माँ ।
दुनियां की बद्द् नजर से
बचाने को अब भी ,
मुझे काला टीका
लगाती है माँ ।
माँ की जगह दूसरा कोई ले नही सकता,
माँ की तरह दूसरा कोई हो नही सकता!
बहुत अच्छी भावपूर्ण अभिव्यक्ति
RECENT POST....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....
बढ़िया प्रस्तुतीकरण |
आभार |
सुन्दर प्रस्तुति
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मेरी दुनिया है माँ तेरे आँचल में |सुन्दर मनमोहक पोस्ट सलाम...........
माँ के लिए हम सदा बच्चे ही रहेंगे माँ से मिलकर ही तो बचपन लौट आता है very nice creatoin
बेहतरीन
माँ की ममता की प्रशंसा का सामर्थ्य शब्द में नहीं है
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