मंगलवार, मई 08, 2012

माँ

 जब भी लिपटती  हूँ ,
 माँ   से  ,
मैं बच्ची हो  जाती हूँ ,
उन्हीं  बचपन की  यादों में ,
मीठी लोरी में खो जाती हूँ ।
जीवन की राहों में, 
धुप   में, छाओं   में ,
बुलंदी की   मचान पर,
उम्र की ढलान पर ,
 एक  मजबूत तना  हूँ मैं।
पर, माँ के आगे 
कमज़ोर लता हो जाती हूँ ।
जब भी निकलती हूँ ,
मैं घर से अकेली 
 संभल  कर जाना,
जल्द आना ,
यही हर बात पर ,
दुहराती है  माँ ।
दुनियां की बद्द् नजर से 
बचाने  को अब भी ,
मुझे ,
 काला  टीका 
लगाती है माँ ।

" रजनी नैय्यर मल्होत्रा "
  

7 comments:

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

माँ की बाहों की सिफ़त जन्नत के दर से कम नहीं।
जब तलक एहसास उसका हम हुए बे-दम नहीं॥
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति...आभार और बधाई

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

यही हर बात पर ,
दुहराती है माँ ।
दुनियां की बद्द् नजर से
बचाने को अब भी ,
मुझे काला टीका
लगाती है माँ ।

माँ की जगह दूसरा कोई ले नही सकता,
माँ की तरह दूसरा कोई हो नही सकता!

बहुत अच्छी भावपूर्ण अभिव्यक्ति

RECENT POST....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....

रविकर ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुतीकरण |
आभार |

Gyan Darpan ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति

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sangita ने कहा…

मेरी दुनिया है माँ तेरे आँचल में |सुन्दर मनमोहक पोस्ट सलाम...........

Rajesh Kumari ने कहा…

माँ के लिए हम सदा बच्चे ही रहेंगे माँ से मिलकर ही तो बचपन लौट आता है very nice creatoin

महेश सोनी ने कहा…

बेहतरीन
माँ की ममता की प्रशंसा का सामर्थ्य शब्द में नहीं है