शनिवार, अप्रैल 14, 2012

ये कैसी रिश्तों की विदाई

घरों   के    बंटवारे   में     रिश्ते    सिमट      गए,
कल  तक घर   था  अब  कमरों   में   सिमट  गए.

भाग   दौड़   करते   थे   सारे   घर   में   कूदाफांदी,
छीन   गयी    उन   मासूम  बच्चो    की   आज़ादी.

दादा,- दादी,   चाचा - चाची, रिश्तों का ये भारीपन,
बड़ों   के   मतभेद   में   ना   पीसो  बच्चों  का  मन .

बंटवारे   की   शर्त  घरों   को दीवारों   में  पाट  गयी
दिल   से  जुड़े   रिश्तों  को   मतलबों  में   बाँट  गयी

खेल खेल में चुन्नू,मुन्नू  बिन्नी का व्याह  रचाते  थे,
 वक़्त   विदाई आने पर ,एक दूजे  को   ताब बंधाते थे.

आज   वो   दिन   भी    आया  बिन्नी   हुई  परायी ,
 उसकी डोली को देने  कान्धा, आया   ना कोई भाई,

ये       कैसी           रिश्तों        की            विदाई,
ये       कैसी          रिश्तों        की             विदाई ?

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"


12 comments:

मदन शर्मा ने कहा…

कविता का तो जवाब नहीं.....बेहतरीन......

रविकर ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति |
बधाई ||

संजय भास्‍कर ने कहा…

अपने बहुत सहजता से समझा दिया
बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति है....!!!

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बेहतरीन।


सादर

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

hardik aabhar ........Madan ji


Ravikar ji ........
Sanjay bhai..........
Yashvant ji....

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत सुंदर रचना...बहुत अच्छा लिखा आपने रजनी जी,..बधाई
.
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

aajkal yhi to ho raha ghar ke sath sath log dil ko bhi baant rahe hain...

Saras ने कहा…

इस दुखद स्तिथि की मन को छूती हुई प्रस्तुति ...!

vandana gupta ने कहा…

बेहतरीन लाजवाब प्रस्तुति।

अरुन अनन्त ने कहा…

बहुत सुंदर

Arun
www.arunsblog.in

Nidhi ने कहा…

हर घर की कहानी का सुन्दर चित्रण

mridula pradhan ने कहा…

bahut achchi lagi......