अक्सर कहती थी मुझसे,
जब भी वो फुरसत के लम्हों में
मेरे साथ होती ,
"मुझे चाँद पर जाना है"
सुनकर मैं हंस देती,
तुम क्या-क्या करोगी?
अजीब सी तमन्नाएं सुनाती रहती हो ,
कभी विमान परिचारिका
बनने का सपना ,
कभी कहती काश मै परिंदा होती,
सारा आकाश नाप आती,
पर चाँद पर जाने के लिए परिंदा होना काफी नहीं ,
कह कर मायूस हो जाती
फिर कुछ पल खामोश रह कर,
करती कुछ सवाल..
क्या मन की खूबसूरती काफी नहीं,
कुछ पाने के लिए ,
तन की खूबसूरती ही जरुरी है
विमान परिचारिका
बनने के लिए मेरे पास खुबसूरत मन तो है,
पर खुबसूरत चेहरा कहाँ से लाऊं ?
उसकी वो ख़ामोशी, वो तड़प,
अंतर्मन की चाह
सब मुझे ऐसे प्रतीत होते थे
जैसे आम सी ज़िन्दगी ,
और आम इच्छाओं को लिए लोग
अंतर्मुखी स्वभाव ,
पर गहरी सोंच में वो चाहत ,
एक कील सी दबी थी|
वक़्त की बदलती करवटों में
धुंधली होती गयी हर तस्वीर
जो खिंची थी उसने
मेरे साथ बैठ कर|
अनायास ही एक दिन ,
वो ज़िन्दगी और मौत से लड़ रही,
अस्पताल के बिस्तर पर,
मुझे देखते ही बस इतना कहा .......
"अब तो कोई योग्यता नहीं चाहिए मुझे चाँद पर जाने के लिए "
मेरी अर्जी शायद सुन ली उपरवाले ने,
अवाक् उसे देखती रही ,
पत्थर की तरह हो गयी ,
मै एक पल को,
आज जब भी,
दिन हो या रात
चाँद देख कर
वो नज़र आती है,
जो कहीं छुप गयी
चाँद के पीछे |
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
जब भी वो फुरसत के लम्हों में
मेरे साथ होती ,
"मुझे चाँद पर जाना है"
सुनकर मैं हंस देती,
तुम क्या-क्या करोगी?
अजीब सी तमन्नाएं सुनाती रहती हो ,
कभी विमान परिचारिका
बनने का सपना ,
कभी कहती काश मै परिंदा होती,
सारा आकाश नाप आती,
पर चाँद पर जाने के लिए परिंदा होना काफी नहीं ,
कह कर मायूस हो जाती
फिर कुछ पल खामोश रह कर,
करती कुछ सवाल..
क्या मन की खूबसूरती काफी नहीं,
कुछ पाने के लिए ,
तन की खूबसूरती ही जरुरी है
विमान परिचारिका
बनने के लिए मेरे पास खुबसूरत मन तो है,
पर खुबसूरत चेहरा कहाँ से लाऊं ?
उसकी वो ख़ामोशी, वो तड़प,
अंतर्मन की चाह
सब मुझे ऐसे प्रतीत होते थे
जैसे आम सी ज़िन्दगी ,
और आम इच्छाओं को लिए लोग
अंतर्मुखी स्वभाव ,
पर गहरी सोंच में वो चाहत ,
एक कील सी दबी थी|
वक़्त की बदलती करवटों में
धुंधली होती गयी हर तस्वीर
जो खिंची थी उसने
मेरे साथ बैठ कर|
अनायास ही एक दिन ,
वो ज़िन्दगी और मौत से लड़ रही,
अस्पताल के बिस्तर पर,
मुझे देखते ही बस इतना कहा .......
"अब तो कोई योग्यता नहीं चाहिए मुझे चाँद पर जाने के लिए "
मेरी अर्जी शायद सुन ली उपरवाले ने,
अवाक् उसे देखती रही ,
पत्थर की तरह हो गयी ,
मै एक पल को,
आज जब भी,
दिन हो या रात
चाँद देख कर
वो नज़र आती है,
जो कहीं छुप गयी
चाँद के पीछे |
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
8 comments:
पढ़ते पढ़ते दर्द को, भूला अपना दर्द |
यही तो जिंदगी की सच्चाई है कि पल भर नहीं लगते
तस्वीर बदलने में . मार्मिक पर सत्य लेखन |
वाह!!!!!!बहुत खूब रजनी जी,..
बेहतरीन भाव पुर्ण प्रस्तुति,सुन्दर रचना...
RECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....
RECENT POST...फुहार....: रूप तुम्हारा...
marmik prastuti....
मार्मिक रचना..पढ़ कर स्तब्ध रहा गया..सार्थक रचना के लिए बधाई..
मन भीग गया ........................
सादर
अनु
Rajni g bahut hi marmik rachna hai..par khubsurat mn to hai pr khubsutat chehra kaha se lau..
ravikar ji .......
sangita ji
dheerendra ji
Roshi ji
Akhil ji.....
expression ji
Suresh kumar ji aap sabhi sudhi janon ko mera hardik aabhar ....
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