मंगलवार, फ़रवरी 14, 2012

ये गुलाब




एक सुर्ख़ गुलाब देकर
कर देते हैं
अपनी  भावनाओं का
इजहार लोग़
यदि
यही है
अपने प्रीत को बयाँ करना
तो कई बार बांधे मैंने
तुम्हारे जुड़े में सुर्ख़ गुलाब |
और , तुम मुस्कुरा कर
अपने हाथों से
छू कर गुलाब को
कह देती हर बार
कितनी फबती है
मेरे  गौर वर्ण पर,
काले बालों में
यह लाल गुलाब !
मै हर बार ठगा सा रह गया
शायद
कभी तो समझ पाओगी
मेरे अनकहे अहसास को |
क्या ये गुलाब
जिसे ,
प्रेम का प्रतीक कहते  आये हैं लोग़
वो  रह गया
मात्र एक
श्रृंगार  बन कर |
कभी देवताओं के सर का,
कभी रमणी के ?

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"