रविवार, जनवरी 29, 2012

बाक़ी है हर तहजीब पुरानी अभी तक गाँव में

बाक़ी है हर  तहजीब पुरानी  अभी तक  गाँव में,
जिस्म से हैं शहरों में बूढ़े जान अभी तक गाँव में.


फ़ैल गया  नफ़रत का ज़हर शहर के धूप-छाँव में,
प्रेम का पौधा फला  खड़ा  है  अभी  तक गाँव  में .

ईमेल   और  चैट  पर होती   है  शहरी  गुफ़्तगू,
डाकिये की राह देखें  लोग  अभी  तक  गाँव  में.

कट रहे   पेड़  शहरों में  अंधी  भौतिक   दौड़  में,
पूजते है  लोग नीम ,पीपल   अभी  तक गाँव  में.

उफ़न -उफ़न आती थी एक  पगली नदी की  धारा,
बरसात  में  सबको  डराती है  अभी  तक  गाँव में.

 नए जमाने को पसंद  डिस्को, पब, चाईनीज़, थाई,
 पुवों-पकवानों की महक आती है अभी  तक गावं में.

दिन  ढले   तक  सोते  हैं ये  मगरिब को ढोने वाले,
तड़के  ही उठ  जाते  हैं लोग  अभी  तक   गाँव  में.
रजनी मल्होत्रा  नैय्यर

9 comments:

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति
आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा दिनांक 30-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

गहन भावाभिव्यक्ति..... बहुत कुछ सहेजे हैं आज भी गाँव ....

सदा ने कहा…

वाह ...बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

mai aabhari hun aap sabhi ke aane se...

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत सुन्दर, सार्थक प्रस्तुति।

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

Piyush ji......hardik aabhar.......
sangeeta didi bahut aabhar........aaj hi dekha maine nayi purani halchal.........

dinesh aggarwal ने कहा…

बहुत खूबसूरत ये चित्रण किया आपने गाँव का,
याद दिलाया इस कविता ने मुझको अपने गाँव का।
नेता,कुत्ता और वेश्या

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

सच गाँव का क्या कहना.... बहुत ही सुंदर तस्वीर आपने खींची है गाँव की.
पुरवईया : आपन देश के बयार- कलेंडर