बंद कर दो मयकदों के दरवाज़े,
वो बनकर सुरूर छानेवाला है,
आज हंसकर बिखर जाओ,
फिज़ाओं में ,ऐ बहारो,
कि मेरा जान-ए - बहार आनेवाला है.
वो बनकर सुरूर छानेवाला है,
आज हंसकर बिखर जाओ,
फिज़ाओं में ,ऐ बहारो,
कि मेरा जान-ए - बहार आनेवाला है.
रजनी मल्होत्रा ( नैय्यर) झारखण्ड बोकारो थर्मल , शिक्षा -इतिहास (प्रतिष्ठा)बी.ए. , संगणक विज्ञान बी.सी .ए. , हिंदी से बी.एड , हिंदी ,इतिहास में स्नातकोत्तर | हिंदी में पी.एच. डी. जारी | लालन पालन झारखण्ड के रांची में, विवाहोपरांत बोकारो थर्मल | मंच पर काव्य पाठ | प्रथम काव्यकृति ----"स्वप्न मरते नहीं “ संकलन "काव्य संग्रह " ह्रदय तारों का स्पन्दन , पगडंडियाँ " व् मृगतृष्णा " में ग़ज़लें | हिंदी- उर्दू पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित .|
Posted by रजनी मल्होत्रा नैय्यर at 30.11.11 7 comments Links to this post