स्वास्थ्य खराब रहा , काफी दिनों बाद ब्लॉग पर आई हूँ आपसभी के रचनाओं से वंचित रही ..........
ये रौशनी , और दीया सलाई ,
सब मिलकर भी नहीं मिटा पाते हैं ,
अंतस के अंधकार को ,
अंतस के बंद कमरों को ,
रोशन करने के लिए ,
नहीं पहुँच पाते चाह कर भी बाहरी उजाले ,
घेर रखी है एक चहारदीवारी सी ,
जिसमे झाँकने का एक झरोका भी नहीं ,
दरवाजे तो होते हैं पर बुलंद ,
जो खुलते हैं सिर्फ मन के दस्तक देने से ,
बाहरी रौशनी की छुअन या आघात,
नहीं हिला पाती है अंतस के दीवार को ,
किवाड़ को,और जरुरत ही क्या है ?
दीया सलाई की.
अंतस के कमरे तो ख़ुद ही चेतना के जागने से ,
जल उठते हैं ,
और मन
नहा उठता है ,
रौशनी की जगमगाहट से .
7 comments:
गहन भावों की खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
बेहतरीन अभिव्यक्ति ....!
बेहद खूबसूरत है ....
रजनी जी आत्म चेतना का प्रकाश अंतस को प्रकाशित करता है.आपकी सुन्दर प्रस्तुति विचारोत्तेजक है.
आभार.
मेरे ब्लॉग पर आप आयीं,इसके लिए भी आभार.
एक बार फिर से मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
भक्ति शिवलिंग पर अपने सुविचार प्रस्तुत करके
अनुग्रहित कीजियेगा.
aap sbhi ko mera hardik aabhar...
aatmik anubhootiyon kee chiteri sukavi chhavi ko naman rajni ji aap antashchetnaa ke prakaash se jag aalokit kartee rahen , lekhni nitya sanwarti rahe yahee kaamnaa hai .
aabhar virendra ji..........
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