अक्ल पर पड़ा पत्थर को पिघलना तो होगा,
आज न कल समाज को बदलना तो होगा.
एक दिन में ही नहीं रचा जाता इतिहास है,
आम इंसां ही कर्मो से बन जाता खास है.
आज मैं अकेली हूँ, कल हम बन जायेंगे,
आप भी जब एक एक अपने कदम बढ़ाएंगे.
बेटा बेटा करनेवालों ,पोते कहाँ से पाओगे ?
मारते जा रहे कोख में बेटी, कैसे वंश बढाओगे.?
उन्मादी इच्छाओं को यदि ,अपने अन्दर न मारेगा,
कौन तुम्हारे बेटों के बीज को, अपने अंदर धारेगा.
चाहते हो सिलसिला चलता रहे, तुम्हारे वंश के बेलों का,
अंत करना होगा ,कोख में बेटी को मारनेवाले खेलों का .
सृष्टि की रचना का, ये एक विधान है,
फर्क नहीं बेटा बेटी में , दोनों एक समान हैं.
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "
रविवार, जुलाई 10, 2011
मारते जा रहे कोख में बेटी ,कैसे वंश बढाओगे ?
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26 comments:
aathi sundar
रजनी जी
जागरूक करती अच्छी पोस्ट
आपने बहुत अच्छा प्रश्न उठाया...सामयिक रचना...बधाई
अस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,
रजनी जी इस विषय पर कितना भी समझाएं मगर हम नहीं समझेंगे दिनों दिन यह अनुपात कम होता जा रहा है | अपने देश के एक प्रदेश में तो लड़कियां शादी के लिए दूसरे प्रदेश से ला रहे है | यह हमारा दुर्भाग्य है |
hardik aabhar .....aap sabhi ko,
is durbhgyapuran sithiti se ubrne ke liye yuva pidhi ke ander jagrukta lana bahut jaruri hai ...
बहुत सटीक और समसामयिक प्रस्तुति...बेटियों के प्रति हमें अपनी मानसिकता को बदलना होगा...
samaj ko prerna deti rachna
विचारोत्तेजक।
kailash ji ..........
roshi ji.........
manoj ji .......... aap sabhi ko mera hardik aabhar.......
res rajni ati sundar bahut hi sargrbhit rachana ha..tarifo k kabil ha..sath me pure samaj ko jag jane kanad bhi aap ne rachana me suna diya ha..agr ab bhi n jage ye betio k hatyare to wo din dur nhi jb .smaj k nam pr bhediye hi bhediye bach jayege or aapas meek dusre ko kha jayege. aap ki rachna ka sndesh smay ki mang ha...shubhkamnaye g
हार्दिक आभार .........
सार्थक चिंतन है, वर्तमान की गलतियों को तो भविष्य में भुगतना ही पड़ेगा। भाव अच्छे हैं आभार
hardik aabhar lalit ji..........
आपका सार्थक चिंतन है. यह बात जरा पोता की चाह रखने वालों को जरूर सोचनी होगी. कृपया गौर कीजिए.
http://aap-ki-shayari.blogspot.com/2011/03/blog-post.html
मेरी एक छोटी-सी "नसीबों वाले हैं,जिनके है बेटियाँ"पर गौर कीजिये.
नसीबों वाले हैं, जिनके है बेटियाँ
घर की लक्ष्मी है लड़की,
भविष्य की आवाज़ है लड़की.
सबके सिर का नाज़ है लड़की,
माता-पिता का ताज है लड़की.
घर भर को जन्नत बनती हैं बेटियाँ,
मधुर मुस्कान से उसे सजाती है बेटियाँ.
पिघलती हैं अश्क बनके माँ के दर्द से,
रोते हुए बाबुल को हंसती हैं बेटियाँ.
सहती हैं सारे ज़माने के दर्दों-गम,
अकेले में आंसू बहती हैं बेटियाँ.
आंचल से बुहारती हैं घर के सभी कांटे,
आंगन में फूल खिलाती हैं बेटियाँ.
सुबह की पाक अजान-सी प्यारी लगे,
मंदिर के दिए" की बाती हैं बेटियाँ.
जब आता है वक्त कभी इनकी विदाई का,
जार-जार सबको रुलाती हैं बेटियाँ.
very nice
maza aa gaya
http://www.chattingu.blogspot.com/
waah dil ko chu gayi aapki shandar khubsurat rachna.........
bahut bahut sukriya ...........aap sabhi ko
ramesh ji .......
nvab ji ..........
amrendra ji.........
thoda network prob. ho rahi barsat ke karan ........aap sabhi ke blog ke page khulte hain par page error ka msg ke karan blog par comment nahi chhod pa rahi....
रजनी मल्होत्रा नैय्यर जी हार्दिक अभिवादन सुन्दर रचना बधाई
कौन तुम्हारे बेटों के बीज को अपने अन्दर धारेगा ...क्या बेबाक थप्पड़ है ये उन लोगों के उपर जो कहाँ से आये उन्हें खुद नहीं पता
धन्यवाद -शुभ कामनाएं
शुक्ल भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
surendra ji hardik sukriya blog par aane k liye .......
आपके लिखने का अंदाज़ कमाल है..
मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा...
सुन्दर नज़्म है...
आपका फोलोवेर बन रहा हूँ....
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है...
प्रासंगिक और सटीक अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
Bahut sundar.. Anupam abhivyakti!!
mai pure 10 dino se apne ghar se bahar rahi jiske karan blog sathiyon aur blog se dur rahi ......... bahut 2 aabhar aapsabhi ko blog par aane ka .der se milne k liye mafi chahti hun
bahot achche......
hardik aabhar ..........
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