शनिवार, जुलाई 02, 2011

बस तेरी तस्वीर से लिपटी, घर- बार अधूरा लगता है

जिस गीत पर झूमता था दिल ,
उस गीत का हर तार अधूरा लगता है,

बंध जाते थे नैन मेरे आईने से बरबस ,
तुम बिन ये रूप श्रृंगार अधूरा लगता है.

सजाते रहे ग्रीवा को असंख्य ज़ेवरात  से
तेरे मोती के हार बिन,अलंकार अधूरा लगता है.

राहें सूनी ,पनघट सूना, सूना सारा  संसार,
रूठे जबसे श्याम , राधा का प्यार अधूरा लगता है .

यादों से सराबोर मेरा ह्रदय चाक- चाक,
बस तेरी तस्वीर से लिपटी, घर- बार अधूरा लगता है.

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"

11 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति!
मानुष तो सदा-सदा से ही अधूरा है!

Roshi ने कहा…

bahut hi sunder prastuti

Vivek Jain ने कहा…

वाह रजनी जी,

विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

mera hardik aabhar ........

dr. shashtri ji .....
roshi ji ........

vivek ji ......... is sneh ka aabhar aap sabhi ko

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

उत्तम भाव हैं,
सार्थक रचना के लिए आभार

شہروز ने कहा…

अनुभव अपार है. भाषाई संकट भी नहीं.अभ्यास में जो कमियाँ हैं अवश्य ही सुधर जायेंगी.
खूब लिखें! खूब पढ़ें!

amrendra "amar" ने कहा…

sunder prastuti

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

sukriya aap sabhi ko.........

virendra ने कहा…

bahut sundar rachnaa rajni ji
badhaayee

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

hardik aabhar virendra ji....