सोमवार, मई 30, 2011

करीब आ कर भी मौत , ना कर सकी मेरा आलिंगन


"करीब आ कर भी मौत ,
ना कर सकी मेरा आलिंगन ,

किया जो मैंने आलिंगन तेरा ,
कोई और इस जहाँ से कुछ कर जायेगा.

छोड़ गयी मुझे देकर ये संदेशा,
शब्द तुझसे ही जिंदा हैं.

भाव मन का दर्पण, कवित कर्म को अर्पण,
खो गए जो शब्द, काव्य कहाँ बन पायेगा.

" रजनी"

शुक्रवार, मई 27, 2011

कहाँ जायेंगे बेघर, बिखर रहा आशियाना

कहाँ जायेंगे बेघर, बिखर रहा आशियाना .


झारखण्ड जब बिहार से अलग हुआ झारखण्ड के लोगों के मन में एक विश्वास की
लहर उठी , अपना राज्य अलग होने से संभावनाएं बढीं लोगों ने उत्साहित हो
कर  नए सरकार  का तथा नयी नीतियों का समर्थन किया .१० सालों में झारखण्ड
सचमे झाड़  का खंड बनकर रह गया .आम जनता इससे मिलनेवाली सुविधाओं से
वंचित रही , फिर भी प्यासे नैन सूखे बंजर भूमि की तरह विकास योजनाओं रूपी
बारिश का इंतजार करती  रही ,कभी तो आएगा बदलाव और हमारी सरकार कुछ तो
अच्छा करेगी जनता के लिए,पर ये सपना पूरा होना तो एक ख्वाब की बात, सरकार
की ये उजाड़ो की नीति ने  लोगों के आँखों से नींद छीन ली है, कहाँ
जायेंगे लोग बेघर होकर ? जब सर से आशियाना छीन जायेगा , जो लोग अपने
पुरखों के समय से रहते आ रहे जिनका जन्म  ,कर्म सब कुछ   इसी भूमि पर हुआ
, उन्हें अचानक उजड़ कर हट जाने का निर्देश ? ये कैसी सरकार है जिसे आवाम
के सुख दुःख का कोई ख्याल नहीं, उजड़ने से पहले कमसे कम कोई तो व्यवस्था
होती कोई भी राहत कैंप  या कोई भी ऐसी व्यवस्था जिसमे लोग सर छूपा सकें .
पर सरकार को इससे कोई सरोकार नहीं, ये मनुष्य का घर   कोई चिड़िया का
घोसला तो नहीं इस पेड़ से उजड़े उस पेड़ में बस गए. फिर क्या अंतर रह
जायेगा इन्सान और जानवर में जब संवेदनाएं ही शून्य हो रही यहाँ |
निर्देशित भूमि पर चेतावनी देना फिर उन्हें कही अलग बसा कर  उजाड़ना ये
न्यायसंगत  होता ,न की कोर्ट का आदेश कह कर अपनी मनमानी तरीके का
इस्तेमाल ये सही तरीका नहीं रहा . . सरकारी जमीं पर बने आवास या उस पर
कब्ज़ा उतने समय से सरकार कहाँ गयी थी, अचानक से सौंदर्यीकरण की सूझी है ,
ये कैसा विकास जिसमे जान व् माल की क्षति की कीमत पर प्राप्त  हो ,एक दो
घर हों तो कोई बात भी , हर तरफ हर कोई रो रहा है कहाँ जायेंगे जो बिखर
गया आशियाना ?? सरकार को इतने बड़े कदम उठाने से पहले सोंचना चाहिए था,
समय देते लोगो को .ये तो तबाही का मंजर गुलामी के काल को भी मात दे रही
शर्मनाक हरकत है ये .जनता से सरकार बनती है न की सरकार से जनता . .

सारी गाज गरीबों पर  ही क्यों ?

जिनके  काले धन  विदेशों में पड़े हैं, जिन्होंने अवैध तरीके से कितने ही
जायदाद खड़े कर लिए  उनपर कोई कारवाही पहले क्यों नहीं क्यों मूक आदेश दे
रही सरकार उजड़ने से पहले बसने की व्यवस्था कर दे सरकार फिर अपनी नीति
चलाये ,क्या  होगा उन जगहों का उन सडकों का जब इस राज्य की धरती पर
गरीबों का खून बह जायेगा .वैसी नीतियों की निंदा ही होनी चाहए जो जनहित
में नहीं, राजा का पहला धर्म अपनी प्रजा की रक्षा करना न की अपने कोष  को
भरने के लिए जनता पर जोर की नीति लागु करना ,सरकार एक बार विचार कर इस
नीति को लागू करती तो ये   निंदनीय नीति नहीं बनती , लाखो लोग बेघर और
बेरोजगार होने से बच जायेंगे ............


"रजनी नैय्यर मल्होत्रा

बोकारो थर्मल .

रविवार, मई 22, 2011

मेरे प्रियतम


जिसे देखूं पल ,पल ख्वाबों में,
जिसे सोंचे मन ख्यालों में,
कोई और नहीं ,वो हो तुम.
मेरे प्रियतम ,प्रियतम, प्रियतम.

अश्कों के नीर बहायें हम,
नैनो के दीप जलाएं हम.
पथ आलोकित करने को तेरा,
 सलभ सा जलते हैं हम.

जिस लम्हा तुमको पाते हैं,
हम कितना ही हरसाते  हैं.
मन के कोमल बागों में,
कितने ही सुमन मुस्काते हैं.

सूखे अधरों की प्यास हो तुम,
मेरे जीने की आस हो तुम.
जिस मंजिल की मै राही हूँ,
वो मंजिल वही तलाश हो तुम.

जिसे देखूं पल ,पल ख्वाबों में,
जिसे सोंचे मन ख्यालों में,
कोई और नहीं ,वो हो तुम.
मेरे प्रियतम ,प्रियतम, प्रियतम.

भर गया अंक तरंगों से,
प्रफुलित है मन उमंगों से.
आरम्भ हुआ है दिवस मेरा,
तेरे प्रेम के नव रंगों से.

रंजों का तिमिर भगाया है,
उल्लास को मन में जगाया है.
मै काया हूँ,तू काया की साया है.

जिसे देखूं पल ,पल ख्वाबों में,
जिसे सोंचे मन ख्यालों में,
कोई और नहीं ,वो हो तुम.
मेरे प्रियतम ,प्रियतम, प्रियतम.

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"

रविवार, मई 08, 2011

प्यारी माँ

"माँ की आँचल में सारा आसमां समा जायें ,ऐसी विशाल हृदय व् कोमल भावन होती है माँ,
इनके आशीष से विपदा छू ना पाए, हर शय से बड़ी दुनिया में होती है माँ ,प्यारी माँ ."

बुधवार, मई 04, 2011

कुछ रचा जाये ऐसा इतिहास

सिंदूरी  सपने   नैनों   में   लिए   खड़ी  बावरी मुस्काए,
क़तरा-क़तरा सागर सा, लिए स्नेह का गागर ठहरा हो.

जीवन   एक संग्राम    बना, ये जलता मंज़र थम जाये,
न   तोड़   सके    कोई भेद ,ऐसा   भाईचारा  गहरा हो.

न   द्वेष   रचे, ना ज़ुल्म बसे, हर   मन गंगा हो जाये,
सुरभित हो ऐसे   संसार,  सुमन सा जीवन खिल जाये.

न कांटे   चुभें विष   वाणों के,न     तकरार  जगह पाए,
गर   आना हो   बन कर दस्तक, तो खुशहाली ही आये,

जो  चैन अमन   हम  खो बैठे ,वो वापस अपने घर आये,
कुछ रचा  जाये ऐसा इतिहास .जिसे विश्व  फिर दुहराए.

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "