रविवार, जून 27, 2010

जिस आसमां ने मुझको चमकना सिखाया ,.

जिस आसमां ने मुझको चमकना सिखाया ,
आज  खुद से वो ,क्यों  मेरा दामन छुड़ा गया.

मै चाँद तो थी पर चमक ना थी मेरी,
दी रौशनी मुझे दमकना सीखा गया.

थी मंजिल मेरे निगाहों के आगे,
पग बन मेरे ,मुझे चलना सीखा गया.

अँधेरा हटाने को मेरे तम से मन के,
वो बना कर सितारा,मुझे ही जला गया .

"रजनी" (रात )  की ना कहीं  सुबह है,
इस बात का वो अहसास दिला   गया.

"रजनी"

सागर में रहकर भी, प्यासे रह गये



सागर में रहकर भी,
प्यासे रह गये,
खुशियों के ढेर में भी,
उदास रह गये,
मोम लिए बर्फ पर थे,
फिर भी पिघल गये,
ठंडा था दूध,फिर भी ,
ठन्डे  दूध से जल गये,
मृग मरीचिका मन का भ्रम है,
फिर भी सोने का देखा हिरन,
तो मन मचल गये,
बंद रखा था पलकों को,
मोती छूपाने के लिए,
बंद पलकों से भी,
मोती निकल गये,
हर धड़कन को छू लें,
वो एहसास बन गये,
हम आदमी थे आम,
अब ख़ास बन गये,
सागर में रहकर भी,
प्यासे रह गये,
खुशियों के ढेर में भी,
उदास रह गये,
हम आदमी थे आम,
अब ख़ास बन गये.