"ये बंदिशें भी कैसी हैं ,
कभी जुड़तीं हैं,
रस्मों के नाम से,
तो कभी ,
बगावत से टूट जाती हैं,
ये एक ऐसी माला है,
जिसके मनके की डोरी ,
खुद ,
गुन्धनेवाले के हाथों ,
टूट जाती है."
सोमवार, मई 24, 2010
ये बंदिशें भी कैसी हैं
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 24.5.10 11 comments
Labels: Poems
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