वो भी हो गए आज़ाद हमसे हाथ छुड़ाने के बाद,
लगता है मेरी सोहबत ने उन्हें कैद कर रखा था.
लोग रो पड़े सुनकर दास्तान मेरे जाने के बाद,
लगता है आंसुओ को मेरे लिए ही छूपा कर रखा था.
याद आई किसी को हमारी आज एक ज़माने के बाद,
लगता है उसने आँखों में कोई अक्स छूपा कर रखा था.
आज संभल गए हैं वो एक ठोकर खाने के बाद,
लगता है किस्मत को चोट से ही बदलना लिखा था.
कह ना पाए कुछ भी जो होंठ हिलाने के बाद,
लगता है तभी पलकों को झुकाकर रखा था.
हम जानते थे वो याद आयेंगे दूर जाने के बाद,
लगता है तभी दरमियाँ फासला बना कर रखा था.
लोग बातें करते हैं पीने की होश खोने के बाद,
लगता है मयखाना से दोस्ती बना कर रखा था.
"रजनी"
मंगलवार, मार्च 16, 2010
लगता है मेरी सोहबत ने उन्हें कैद कर रखा था.
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 16.3.10 13 comments
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