"लहरों की थपेड़ों को साथ साथ सहते हैं दोनों,
आमने सामने होकर भी मिल नहीं पाते,
क्या किस्मत पाई है किनारों ने .."
शुक्रवार, जनवरी 29, 2010
क्या किस्मत पाई है किनारों ने
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 29.1.10 0 comments Links to this post
Labels: Poems
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